परिवेशीय जीव जंतु

कक्षा : 3
विषय : हमारा परिवेश
पाठ : 4  ( परिवेशीय जीव जंतु )

( कहानी संवाद द्वारा )

नील के एग्जाम खत्म होकर गर्मी की छुट्टियाँ पड़ गई थीं। वह और उसके दोस्त प्रतिदिन एक साथ मैदान में बहुत सारे खेल खेलते थे। सूर्यास्त के बाद सभी नील के घर आते और वीडियो गेम खेलते। यह उनका हमेशा का रूटीन था।
हमारी अभी इतने दिन की छुट्टियाँ बाकी हैं और हम लोग अभी से बोर हो गए, 'साहिल ने बेबसी से कहा।
नील और उसके दोस्तों को परेशान देख कर नील की दादी बोली, "क्या हुआ नील तुम और तुम्हारे दोस्त इतने चुपचाप क्यों बैठे हो? "
तभी नील बोला, "हमारी गर्मी की काफी सारी छुट्टियाँ हैं, लेकिन हम एक जैसा खेल खेलकर बोर हो गए हैं। क्या आप हमारी कुछ मदद करेंगी, जिससे हमारी छुट्टियाँ मजेदार हों?"
नील की ये बातें सुनकर इसके दादा बोले, "मेरे पास एक नया और ज्ञानवर्धक खेल है।"
कृपया हमें बताइये दादा जी, रोहन बोला।
नील के दादा जी, आज तुम घर जाकर रास्ते में, घर में या जहाँ कहीं भी कोई जानवर देखे हो तो उनके बारे में जानकर कल आना।
नील और उसके दोस्त : टीवी में भी।
नील के दादा जी : हाँ, टीवी, अखबार, किताब और यहाँ तक चिड़ियाघर में भी देखे हो तो उनके बारे में जानकारी लेकर कल  आना।
अगले दिन नील के सभी दोस्त समय से उसके घर पहुँच गए और दादा जी को प्रणाम कर बैठ गए।
दादा जी : खुश रहो बच्चों, क्या आपने कल का कार्य कर लिया है?
नील और उसके दोस्तों ने एक स्वर में कहा , "हाँ और अब आप इस खेल को आगे बढ़ायें।"
नील के दादा जी : तो चलो उन जानवरों के नाम बताओ।
नील और उसके दोस्त : 'गाय, बैल, भेड़, बकरी, घोड़ा, गधा, चूहा, बिल्ली, कुत्ता, खरगोश, हाथी, हिरन, शेर, ऊँट और बाघ आदि।
नील के दादा जी : "शाबास बच्चों, बहुत अच्छा तुम्हें तो बहुत से जानवरों के नाम पता हैं। क्या तुम इन जानवरों को पालतू और जंगली जानवरों में बाँट सकते हो?
नील और उसके दोस्त : दादा जी! पालतू और जंगली जानवर कहते किसे कहते हैं?
नील के दादा जी : पालतू जानवर उन्हें कहते हैं जिन्हें हम घर मे पालते हैं और जंगल में रहने वाले जानवर जिन्हें हम पाल नहीं सकते जंगली जनावर कहते हैं।
नील और उसके दोस्त : इस तरह गाय, भैंस, बकरी, घोड़ा पालतू और शेर, हाथी, चीता और बाघ जंगली जानवर हुए।
नील के दादा जी : वाह, बच्चों शाबास, क्या सभी जानवर देखने में एक जैसे दिखते हैं?
नील और उसके दोस्त : नहीं।
नील के दादा जी : तब कैसे थे?
नील और उसके दोस्त : अलग-अलग।
दादा जी : अलग अलग से मतलब क्या है?
नील और उसके दोस्त : दादा जी! कुछ जानवरों के रंग अलग-अलग हैं, तो कुछ की बोली तो कुछ आकार में बहुत लंबे, भारी और चौड़े तो कुछ छोटे हैं।
नील के दादा जी : शाबास, कुछ बड़े और छोटे जानवरों के नाम बताओ।
नील और उसके दोस्त : चूहा, खरगोश, बकरी, भेड़ और कुत्ता छोटे दिखते हैं और हाथी, जिराफ और ऊँट बड़े-बड़े।
नील के दादा जी : वाह।
साहिल दादा जी से, "दादा जी मैंने चिड़ियाघर में देखा था कि अलग-अलग जानवरों के लिए अलग-अलग खाना दिया गया था, ऐसा क्यों?"
नील के दादा जी : बहुत बढ़िया प्रश्न किया है तुमने। अच्छा ये बताओ क्या हम सभी मनुष्य एक तरह के ही खाना खाते हैं या अलग-अलग?
नील और उसके दोस्त : अलग-अलग।
साहिल : दादा जी मुझे और मेरे भाई को माँस, मछली और अंडे पसंद हैं तो मेरी बहन को साग सब्जी।
दादा जी : जैसे कि साहिल और उसके भाई और बहन को अलग-अलग तरह के खाने पसंद हैं। उसी तरह जानवरों की पसंद भी भिन्न-भिन्न है और हाँ, बच्चों आज रात होने वाली है। अब तुम घर जाओ और कल जो जानवर साग, सब्जी, अनाज, फल, फूल और दूध खाते हैं उनके नाम और जो माँस खाते हैं उनके नाम तथा जो साग सब्जी और माँस दोनों खाते हैं उनके नाम पढ़कर आना।
अगले दिन नील और उसके दोस्त नील के घर आये और दादा जी को उनके दिए गए प्रश्नों के उत्तर देने प्रारंभ किये।
साहिल : गाय, बकरी, घोड़ा, भैंस और हाथी घास खाते हैं।
रोहन : शेर, चीता, बाघ माँस खाते हैं जबकि जिराफ पेड़ के पत्ते।
नील : चूहा, कुत्ता, बिल्ली रोटी और माँस दोनों खाते हैं।
नील के दादा जी : बहुत अच्छा। आप सब तो बहुत होशियार और मेधावी हो बच्चों।
नील और उसके दोस्त : लेकिन जानवरों के खाने के बारे में आपने क्यों पूछा था?
नील के दादा जी : चलो कल के खेल को आगे बढ़ाते हैं। आज तुम सब जो जानवरों के नाम उनके खाने के आधार पर अलग-अलग बताए हो, तो उनमें से साग सब्जी और घास खाने वाले, माँस खाने व वाले और दोनों खाने वालों को क्या-क्या कहते हैं?
नील और उसके दोस्त  इधर उधर देखने लगे।
तभी दादा जी बोले : कोई बात नहीं बच्चों, मैं ही तुम्हें बता देता हूँ।
नील और उसके दोस्त बताइए दादा जी।
नील के दादा जी : वैसे जंतु जो केवल पौधों से प्राप्त भोजन पर आश्रित होते हैं या भोजन करते हैं वो शाकाहारी कहलाते हैं।
रोहन : इस तरह माँस खाने वाले माँसाहारी हुए।
नील के दादा जी : हाँ। रोहन ने एकदम सही कहा।
नील : तो फिर जो दोनों तरह के खाना खाते हैं उन्हें हम क्या कहेंगे।
नील के दादा जी : नील, उन्हें हम सर्वाहारी कहते हैं।
नील और उसके दोस्त : यह खेल खेलने में तो मजा आ गया।
नील के दादा जी : अच्छा बच्चों क्या हम सब अपने आस पास केवल जानवर ही देखते हैं या कोई और जीव जंतु?
नील और उसके दोस्त : दादा जी! हम जानवरों के अलावा पक्षियों को भी देखते हैं।
नील के दादा जी : पक्षियों को जानवरों से अलग कैसे करेंगे?
नील और उसके दोस्त : दादा जी पक्षी उड़ते हैं और उनके चोंच और पंख होते हैं।
नील के दादा जी : शाबाश बच्चों। क्या तुम्हें पता है कि पक्षी अंडे देते हैं और जानवर बच्चे।
नील और उसके दोस्त : जी दादा जी।
रोहन मेरे घर की मुँडेर पर गौरैया ने घोसला बना कर अंडा दिया था जिसमें से अब उसके बच्चे भी निकल आये हैं।
नील के दादा जी : अच्छा। अंडा देने वाले जीवों को क्या कहते हैं?
नील और उसके दोस्त : नहीं पता, दादा जी!।
नील के दादा जी : कोई बात नहीं बच्चों! जो अंडे देते हैं उन्हें अंडज कहते हैं।
नील और उसके दोस्त : जो बच्चे देते हैं।
नील के दादा जी : उन्हें जरायुज।
बच्चों जिस तरह जानवरों में अंतर पाया जाता है उसी तरह पक्षियों में भी विभिन्नता पाई जाती है। क्या तुम इसके बारे में बता सकते हो?
नील : कुछ पक्षी आसमान में बहुत अधिक ऊँचाई पर उड़ते हैं तो कुछ जमीन से थोड़ा ही ऊपर।
रोहन : उल्लू और चमगादड़ जैसे पक्षी केवल रात को दिखते हैं।
साहिल : कुछ पक्षी काले, कुछ हरे तो कुछ सुनहले रंग के होते हैं।
दादा जी : शाबास बच्चों।
नील और उसके दोस्त : दादा जी, बाज, गिध्द और चील बहुत अधिक ऊँचाई से ही कीड़े मकोड़े को देख लेते हैं क्या ये सच है?
नील के दादा जी : हाँ बच्चों। इनकी देखने की शक्ति सबसे तेज होती है।
बच्चों कुछ जीव जंतु रेंग कर चलते हैं, उनके नाम बता सकते हो?
नील और उसके दोस्त : साँप, केचुआ, मेंढक, छिपकली और मगरमच्छ।
नील के दादा जी : अच्छा बच्चों, ये सभी जीव जंतु कहाँ-कहाँ रहते हैं?
नील और उसके दोस्त : दादा जी आज बस इतना ही। इस प्रश्न का उत्तर हम कल दे सकते हैं?
नील के दादा जी : हाँ।
अगले दिन सभी बच्चे दादा जी के पास पहुँचे और अपना अपना विचार दादा जी को सुनाने लगे।
नील : "दादा जी! हाथी, घोड़ा, गाय, भैंस, आदि जमीन पर रहते हैं और मछलियाँ पानी में।
साहिल : चिड़ियाघर में मगरमच्छ और मेंढक को मैंने पानी और जमीन पर रहते हुए देखा था।
रोहन : पक्षी घोसला बनाकर रहते हैं।
नील के दादा जी : अच्छा ये बताओ जो जमीन पर रहते हैं उन्हें हम क्या कहते हैं?
नील और उसके दोस्त : विचारमग्न हो गए।
तभी दादा जी उन्हें परेशान देख कर बोले, अच्छा तो मैं ही बता देता हूँ। जो जमीन पर रहते हैं उन्हें थलचर कहते हैं।
साहिल : यानी जो पानी में रहते हैं उन्हें जलचर कहेंगे।
दादा जी : हाँ बेटा। उन्हें हम जलचर कहते हैं।
रोहन : और जो आकाश में उड़ते हैं उन्हें हम क्या कहेंगे?
नील के दादा जी : जो आकाश में उड़ते हैं उन्हें नभचर कहते हैं।
नील : लेकिन कुछ जीव तो जल और स्थल दोनों पर रहते हैं जैसे मगरमच्छ, मेंढक और बत्तख।
नील के दादा जी : हाँ बच्चों, कुछ जीव जल और थल दोनों जगह रहते हैं उन्हें हम उभयचर कहते हैं।
बच्चों ये जीव-जंतु हमारे जीवन में बहुत ही उपयोगी होते हैं इसलिए इनके संरक्षण के लिए हमें जागरूक होना चाहिए।
नील और उसके दोस्त : ये जीव-जंतु हमारे लिए उपयोगी कैसे हैं?
नील के दादा जी : हम दूध पीते हैं।
नील और उसके दोस्त  : जीदादा जी।
नील के दादा जी : दूध हमें कहाँ से मिलता है?
नील और उसके दोस्त : गाय, भैंस, बकरी से।
नील के दादा जी : और अंडे।
नील और उसके दोस्त : मुर्गी, बत्तख से
नील के दादा जी : इसी तरह मछली और जानवर केवल खाने की वस्तुएँ ही नहीं देते अपितु ये हमें उर्वरक भी देते हैं।
नील और उसके दोस्त : कैसे?
नील के दादा जी : जानवरों के गोबर और केंचुआ से खाद बनती है जो खेतों में डाला जाता है। जानते हो केंचुआ को किसानों का मित्र कहा गया है।
नील और उसके दोस्त : लेकिन हम जीवों की सुरक्षा कैसे कर सकते हैं?
नील के दादा जी : कर सकते हैं। हम पक्षियों के लिए अपने छत पर मिट्टी के या किसी भी बर्तन में पानी और अनाज रख सकते हैं। पेड़ पौधे लगाकर।
रोहन : दादा जी! कुछ लोग प्लास्टिक की थैली में खाना सड़क पर फेंक देते हैं क्या वे जीवों की सुरक्षा के लिए ऐसा करते हैं?
नील के दादा जी : नहीं। प्लास्टिक नुकसान करता है और प्लास्टिक खाकर जीव-जंतु मर जाते हैं।
पहली चीज कि कूड़ा हमें सड़क पर फेंकना नहीं चाहिए।
नील और उसके दोस्त : तब कहाँ फेंकना चाहिए?
नील के दादा जी : कूड़ा हमेशा कूड़ेदान में फेंकना चाहिए और जीव जंतुओं को दिया जाने वाला भोजन साफ-सुथरा या उनके खाने के पात्र में रख देना चाहिए।
नील और उसके दोस्त : दादा जी! आज से हम आपके बताए हुए रास्ते पर चलेंगे और जीवों के संरक्षण के लिए प्रयास करेंगे।
नील के दादा जी : शाबास बच्चों। मुझे तुमसे यही उम्मीद थी।


लेखक
विकास तिवारी,
सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय अताय,
विकास खंड-शहाबगंज,
जनपद-चन्दौली।

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