दीप अंतर्मन का

यूँ तो दीप कई जलाए जीवन में
एक दीप ऐसा जला अंतर्मन में
चाँद भी शरमा जाए नील गगन में
मन में खुशी, अश्रु हो भीगे नयन में।

प्रभु की भक्ति जैसे भजन में
मैया की शक्ति जैसे कीर्तन में
अप्सरा उतरी हो जैसे तपोवन में
एक दीप ऐसा जला अंतर्मन में।

मयूर नृत्य करें जैसे घने वन में
भूखे की ख़ुशी जैसे हो भोजन में
सुर और ताल सजे जैसे गायन में
एक दीप ऐसा जला अंतर्मन  में।

गवाही देता चेहरा जैसे दर्पण में
सुखद अनुभूति हो जैसे अर्पण में
चेहरा मुस्कुराये प्रियतम के दर्शन में
एक दीप  ऐसा  जला अंतर्मन में।

ठंडी पुरवाई धूप की तपन में
जान डाल दे किसी कफ़न में
आशा की किरण द्वंद शिकन में
एक दीप ऐसा जला अंतर्मन  में।

एक दीप ऐसा जला अंतर्मन में
की जीवन फिर लौट चले बचपन में।

रचयिता 
मोनिका रावत मगरूर,
सहायक अध्यापक,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय पैठाणी,
विकास खण्ड-थलिसैण, 
जनपद-पौड़ी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।

Comments

  1. हां सच लिखा है आपने , एक दीप बचपन की यादों का हमेशा जगमगाता रहता है । आपको हार्दिक बधाई ।

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  2. हार्दिक बधाई सुन्दर रचना ✍🙏

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