हाय री दहेज प्रथा

आज अंधेरा लालच का छाया,
उड़ी सच्चाई की धूप।
और दहेज प्रथा ने ले लिया;
महा विनाशकारी रूप।

महा विनाशकारी रूप है ये,
हर नारी पर भारी।
नारी बिन अस्तित्वहीन है;
ये तो दुनिया सारी।

कई तो इससे हार चुकी हैं,
और कई अभी भी जूझती।
लालच लोभ के चक्रव्यूह को;
कैसे भला वो बूझती।

जिस अग्नि को साक्षी बना,
लाते हैं घर में नयी नवेली को।
उसी अग्नि में जला देता है;
हत्यारा जीवन सहेली को।

आज पुत्रवधू वो किस काम की,
जो न लाती रुपयों की पेटी है।
निर्मम हत्यारे भूल जाते हैं;
कि वो भी किसी की बेटी है।

अति सम्पन्नता की चाह में,
रिश्तों की पवित्रता खो रही।
पैसों का है बस बोलबाला;
हाय इंसानियत तो आज सो रही।

इसलिए हर सास ससुर दें,
अपनी बहू को बेटी सा प्यार।
क्योंकि वास्तव में नारी ही है;
इस महाजगत का आधार।।

रचयिता
चारु कुलश्रेष्ठ, 
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय रामपुर घनश्याम,
विकास क्षेत्र-शीतलपुर,
जनपद-एटा।

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