शिक्षा में खेल का महत्व

वर्तमान समय को देखते हुए आज शिक्षा के साथ खेलकूद को भी काफी महत्व दिया जा रहा है समय के अनुसार आम जनसाधारण की तनावपूर्ण जीवन शैली से निज़ात पाने का एक प्रमुख साधन खेल है और ये कहना भी गलत नहीं कि शिक्षा और खेलकूद एक-दूसरे के अभिन्न अंग है। जहाँ एक ओर शिक्षा के माध्यम से हम किताबी ज्ञान के साथ बच्चों का बौद्धिक, मानसिक विकास  होता है वही दूसरी और खेलकूद के माध्यम से बच्चों का शारीरिक विकास के साथ साथ उनमें परस्पर सहयोग, एकता, आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता और सकारात्मक सोच जैसी आदतों का विकास होता है। ये सर्वविदित ही है कि "स्वस्थ शरीर मे स्वस्थ मस्तिष्क का विकास" होता है क्योंकि जब बच्चा तन और मन दोनों तरफ से स्वस्थ होगा तो स्वतः ही पढाई के प्रति उसकी एकाग्रता व रुचि जाग्रत होगी। 

वैसे तो मनुष्य जीवन की शुरुआत ही खेल से होती है ये हम सभी ने अपने बचपन से महसूस किया है फिर ये कहना गलत न होगा कि शिक्षा व् खेलकूद  एक-दूसरे के पूरक हैं। अगर हम अपनी प्राचीन शिक्षा प्रणाली पर नजर डालें तो वहाँ भी  सर्वविदित है कि भारतीय संस्कृति में उस समय गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के दौरान गुरुओं द्वारा अपने शिष्यों को ज्ञान विज्ञान  व बौद्धिक, व्यवहारिक, सामाजिक ज्ञान के साथ-साथ उन्हें पूर्णतः परिपक्व करने के लिए अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा भी दी जाती थी। 

जिनमें घुड़सवारी, तलवारवाजी, धनुर्विद्या जैसे विभिन्न खेल शामिल थे जिनका प्रयोग प्राचीन समय में युद्ध या मुसीबत में अपनी रक्षा के लिए किया जाता था और समय-समय पर खेलों की प्रतियोगिता के माध्यम से उनके बौद्धिक व् व्यवहारिक ज्ञान को परखा भी जाता था।
वर्ष 1990 के आसपास खेलकूद की ज्यादा अहमियत नहीं थी, परंतु आज के रहन-सहन व् तनावपूर्ण जीवनशैली को देखते हुए एक बार पुनः national curriculum framework 2005 अनिवार्य  शिक्षा के तहत पाठ्यक्रम मे अनिवार्य विषयो के साथ खेलकूद  को भी शामिल किया गया। विद्यालयों में शिक्षकों द्वारा शैक्षिक विषयों को पढ़ाने व समझाने के लिए खेलकूद गतिविधियों को शामिल कर शिक्षण कार्य को रुचिपूर्ण व तनावपूर्ण बनाने में नित नए प्रयोग किये जा रहे हैं। इस समय प्रतियोगी युग मे शिक्षा व वैज्ञानिक ज्ञान जरुरी है किन्तु विद्यार्थी या मनुष्य को ये भी आवश्यक है कि वो अपनी जीवनशैली को तनावमुक्त रखकर हर कार्य व परिस्थिति में सहज रहते हुए कार्य करें और इसके लिए नियमित खेलकूद  योग, ध्यान, प्राणायाम को अपनाना जरुरी है जिससे कि विद्यार्थी जीवन से ही तनावमुक्त रहकर शिक्षा ग्रहण करे व हर परिस्थिति मे अनुकूल व्यवहार करते हुए सहजता से कार्य कर सके।
एक तथ्य ये भी है कि जिस तरह से शिक्षा व्यक्ति के जीवनयापन हेतु व्यावसायिक मार्ग प्रशस्त करती है उसी प्रकार खेलकूद शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थी सेना, रेलवे, पुलिस, शिक्षक आदि के रूप मे अपना भविष्य उज्जवल कर सकते हैं। 
और अंत मे मैं इतना ही कहूँगी.....

"पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नबाब,
खेलोगे कूदोगे बनोगे होशियार"।
सभी के उत्तम स्वास्थ्य की कामना के साथ।

लेखिका
सीमा शर्मा,
जिला व्यायाम शिक्षिका,
जनपद-मथुरा।

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