प्रकृति, पानी और जीवन

ताप की संगत करके ऐ जल,
कितने भी के रूप बदल,
मंद हवाओं का साथी बन
कर ले गगन में चहल-पहल,
इक दिन ठहरेगा तू कहीं
यह प्रकृति सबक सिखाएगा,
बूँद-बूँद बनकर टपकेगा,
या मूसलाधार गिराएगा।।

सर्द हवाओं में घुल जा
या ओस बनो पत्तों की,
मोती से बनकर चमको
या अश्रु बनो किसी चक्षु की,
शर्म का पानी - पानी होकर
फिर जमीन पर आएगा,
एक दिन ठहरेगा तू कहीं पर
यह प्रकृति सबक सिखाएगा।
बूँद - बूँद बनकर टपकेगा
या मूसलाधार गिराएगा।

देख कर खट्टी मीठी गोली
मुँह का पानी बन जाओ तुम,
या फिर बर्फ का गोला बनकर
मीठे रंगों से नहाओ तुम,
नन्हें बच्चों के कोमल मुख से
फिर एक दिन चूसा जाएगा।।
एक दिन ठहरेगा तू कहीं पर
यह प्रकृति सबक सिखाएगा,
बूँद - बूँद बनकर टपकेगा,
या मूसलाधार गिराएगा।।

रचयिता
अनिल कुमार,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय समसपुर,
विकास खण्ड-खजुहा, 
जनपद-फतेहपुर।

Comments

  1. सुन्दर रचना 🙏

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  2. अतिसुन्दर रचना

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  3. सुन्दर रचना 🙏

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  4. जल बचाओ जीवन बचाओ
    सुन्दर रचना।

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