हमारी धरा

पृथ्वी है अपनी अनमोल,
हे मानव ज़रा जान इसका मोल।
मिला है अवसर इस पर जीने का
तो समझ इसका कितना है तोल।

क्या - क्या नहीं था इस पृथ्वी पर,
तूने क्या से क्या कर डाला।
आज आया फिर समय लौटकर
तुझे तेरा किया करा दिखा डाला।

अब भी है वक़्त बदल जाने का,
पृथ्वी को उसका सब लौटाने का।
मौका मिलता है एक बार ही
गलती अपनी सुधार ले तू ही।

अब भी नहीं बदला अगर तू,
तब सोच, क्या होगा फिर आगे?
खेला जो खेल पृथ्वी से तू,
नही बचेगा तू शेष, नहीं बचेगा तू शेष।

रचयिता
आस्था शर्मा,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय इस्लामनगर,
विकास खण्ड व जनपद - मुरादाबाद।


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