सोच बदलो
सोच बदलो आज मित्रों,
ये दुनिया ही बदल जाएगी।
दृष्टि अपनी उधर मोड़ दो,
तो दिशा ही बदल जाएगी।
दुख द्वन्द संघर्ष देखे, चले,
उसी में पला है ये जीवन।
विघ्न ढेरों हैं खड़े सामने,
बीते उसी में रोज जीवन।
आशा किरण ही वरो तुम,
निराशा न रह फिर पाएगी।
प्रात की वात होगी शीतल,
आस सुख की मिल जाएगी।
मन की कलिका खिल उठे
खिलेगी हर पाँखुरी-पाँखुरी।
भाव सुमनों की माला बने,
बज उठे हर्ष की वह बाँसुरी।
आइने में छवि हँसेगी सदा
तेरी रूह तक भी मुस्काएगी।
कोई गम न पालो कभी तुम,
जिन्दगी सारी बदल जाएगी।
पीर जिनमें हो बँटाओ खुशी,
संग सबका तुम निभाते चलो।
फूल काँटों में खिलते रहे हैं,
तुम भी वैसे ही जग में खिलो।
मनुज हो तो मनुजता तुम्हारी,
धन्य वसुधा ये कर जाएगी।
कीर्ति फैलेगी सुवासित सदा,
एक इबारत नई लिख जाएगी।
तू न डर चलकर देखे उधर,
यूँ बैठना कोई हल भी नहीं।
आज की मुश्किलें जीत लेना
जो बिछी सामने हैं हर कहीं।
वीरान राहों पे कर दो रोशनी,
दुनिया तुम्हारी बदल जाएगी।
लाख आए अँधेरा राह पर
मंजिल तुम्हारी मिल जाएगी।
ये दुनिया ही बदल जाएगी।
दृष्टि अपनी उधर मोड़ दो,
तो दिशा ही बदल जाएगी।
दुख द्वन्द संघर्ष देखे, चले,
उसी में पला है ये जीवन।
विघ्न ढेरों हैं खड़े सामने,
बीते उसी में रोज जीवन।
आशा किरण ही वरो तुम,
निराशा न रह फिर पाएगी।
प्रात की वात होगी शीतल,
आस सुख की मिल जाएगी।
मन की कलिका खिल उठे
खिलेगी हर पाँखुरी-पाँखुरी।
भाव सुमनों की माला बने,
बज उठे हर्ष की वह बाँसुरी।
आइने में छवि हँसेगी सदा
तेरी रूह तक भी मुस्काएगी।
कोई गम न पालो कभी तुम,
जिन्दगी सारी बदल जाएगी।
पीर जिनमें हो बँटाओ खुशी,
संग सबका तुम निभाते चलो।
फूल काँटों में खिलते रहे हैं,
तुम भी वैसे ही जग में खिलो।
मनुज हो तो मनुजता तुम्हारी,
धन्य वसुधा ये कर जाएगी।
कीर्ति फैलेगी सुवासित सदा,
एक इबारत नई लिख जाएगी।
तू न डर चलकर देखे उधर,
यूँ बैठना कोई हल भी नहीं।
आज की मुश्किलें जीत लेना
जो बिछी सामने हैं हर कहीं।
वीरान राहों पे कर दो रोशनी,
दुनिया तुम्हारी बदल जाएगी।
लाख आए अँधेरा राह पर
मंजिल तुम्हारी मिल जाएगी।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रभारी अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
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