सीखना है तो सीखो
सीखना है तो सीखो,
उन ऊँचे तने खड़े पर्वतों से,
झेलते हैं जो भयंकर तूफान,
होते नहीं विचलित जरा भी,
शान से रहते अडिग अपनी जगह पर।
सीखना है तो सीखो,
उस रोशनी बिखेरते सूर्य से,
चाहे कितने ही काले मेघ,
चहुँओर से ढाँपे उसे,
सब व्यूह तोड़ बाहर आ ही जाता।
सीखना है तो सीखो,
गहरी, शांत नदियों से,
चाहे कितनी ही चट्टानें,
बाधाएँ आएँ कर्म पथ पर,
काट सब रास्ता अपना बनातीं।
सीखना है तो सीखो,
उन फलदार हरे वृक्षों से,
जो लदे हैं फूलों और फलों से,
पर नहीं है कुछ उनका उनके लिए,
सब परमार्थ को है समर्पित।
सीखना है तो सीखो,
अपनी धरती माता से,
जो सबका भार उठाती,
पर उफ्फ भी न करती,
लहलहाती फसलों से खुशी जतातीं।
सीखना है तो सीखो,
इन खिले हुए फूलों से,
जो अपनी खुश्बू फैलाते हैं,
ईश के चरणों पर चढ़ते हैं,
मुरझाकर भी महकते रहते हैं।
सीखना है तो सीखो,
निरंतर चलते समय से,
सर्दी, गर्मी हो या बरसात,
चाहे आएँ आंधी या तूफान
निरंतर आगे बढ़ता जाता।
रचयिता
डॉ0 रचना सिंह,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कटरी पीपरखेड़ा,
विकास खण्ड-सिकन्दरपुर कर्ण,
जनपद-उन्नाव।
उन ऊँचे तने खड़े पर्वतों से,
झेलते हैं जो भयंकर तूफान,
होते नहीं विचलित जरा भी,
शान से रहते अडिग अपनी जगह पर।
सीखना है तो सीखो,
उस रोशनी बिखेरते सूर्य से,
चाहे कितने ही काले मेघ,
चहुँओर से ढाँपे उसे,
सब व्यूह तोड़ बाहर आ ही जाता।
सीखना है तो सीखो,
गहरी, शांत नदियों से,
चाहे कितनी ही चट्टानें,
बाधाएँ आएँ कर्म पथ पर,
काट सब रास्ता अपना बनातीं।
सीखना है तो सीखो,
उन फलदार हरे वृक्षों से,
जो लदे हैं फूलों और फलों से,
पर नहीं है कुछ उनका उनके लिए,
सब परमार्थ को है समर्पित।
सीखना है तो सीखो,
अपनी धरती माता से,
जो सबका भार उठाती,
पर उफ्फ भी न करती,
लहलहाती फसलों से खुशी जतातीं।
सीखना है तो सीखो,
इन खिले हुए फूलों से,
जो अपनी खुश्बू फैलाते हैं,
ईश के चरणों पर चढ़ते हैं,
मुरझाकर भी महकते रहते हैं।
सीखना है तो सीखो,
निरंतर चलते समय से,
सर्दी, गर्मी हो या बरसात,
चाहे आएँ आंधी या तूफान
निरंतर आगे बढ़ता जाता।
रचयिता
डॉ0 रचना सिंह,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कटरी पीपरखेड़ा,
विकास खण्ड-सिकन्दरपुर कर्ण,
जनपद-उन्नाव।
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