दुर्गावती
हो रूप दुर्गा माँ का,
दुर्गावती रानी।
है नाज हमें तुम पर,
ओ रानियों की रानी।
खोकर पति को तूने,
हिम्मत थी दिखाई।
हर विपत्ति से तूने,
थी सदा आँख मिलाई।
ले बागडोर हाथों में,
खुद राज्य था सँभाला।
अपने पराक्रम से,
मुगलों को रौंद डाला
मुठ्ठी भर सेना से,
रण में धूम मचाई।
संग पुत्र के अपने,
मुगलों को धूल चटाई।
चुभे थे तीर तन में,
घायल थी आँख तेरी।
फिर भी ना हार मानी,
ये महानता थी तेरी।
मरने के बाद भी तुझे,
लगा सके हाथ कोई।
इसलिए तूने थी ठानी,
मार दे तुझको कोई।
आधार सिंह से तब,
विनती की थी तूने।
ले लो जान हमारी,
ये बात बोली तूने।
आधार हारा हिम्मत,
तो खुद वीरता दिखाई।
सीने में उतार खंजर,
खुद की लाज बचाई।
अबला नहीं है नारी,
ये करके दिखाया तूने।
दुश्मन का चीर सीना,
जग को दिखाया तूने।
कोमल है नारी लेकिन,
पागल नहीं है नारी।
करते हैं जो पुरुष जो,
कर सकती है वो नारी।
नमन तुम्हें है रानी,
दुर्गावती सयानी।
इतिहास के पन्नों पर,
है अमर तेरी कहानी।
रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।
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