श्री गंगा दशहरा
मनाया जाता जेठ शुक्ल पक्ष की
दशमी तिथि को यह उत्सव
हुआ था इस दिन ही तो
माँ गंगा का भू पर उद्भव
पतितपावनी देवनदी को
भगीरथ भू पर लाये थे
कठिन तप के बल पर
ब्रह्मा से यह वर वह पाए थे
वर पाने के बाद भी
प्रश्न सामने यह आया
अविरल उन तरंगों का
प्रवाह, भार सहन किस विधि होगा?
देवाधिदेव महादेव ने तब
झट भगीरथ का संशय सुलझाया
गंगा माँ अब हुई त्रिपथगा
शक्ति दायिनी, मुक्ति दायिनी
प्राणीमात्र की हैं जननी
अन्न, जल व मोक्षदायिनी
गंगा दशहरा में आज भी,
द्वार-पत्र चौखट पर लगाते
पंच ऋषियों वाले मंत्र जो
वज्रवारक हैं कहलाते
अविरल बहे गंगा की धारा।
होवे रोग और पापों का नाश
स्वच्छ सदा रखेंगे हम जब
तभी माँ की होगी पूर्ण आस
त्रिपथगामिनी, मंदाकिनी
हे भागीरथी! कोटिशः प्रणाम
जल-संरक्षण की भी सीख देता
गंगा दशहरा पुण्य नाम!
रचयिता
गीता जोशी,
सहायक अध्यापक,
राजकीय कन्या उच्च प्राथमिक विद्यालय जैनौली,
विकास खण्ड-ताड़ीखेत,
जनपद-अल्मोड़ा,
उत्तराखण्ड।
Nice poem
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