योग की बेला
सूर्योदय की स्वर्णिम बेला,
प्रकृति का अनुपम सौंदर्य फैला,
सुहानी पवन जब बहने लगी,
योग की बेला आने लगी।
इंगला पिगला नाड़ी शोधन,
करो प्राणायाम और सब आसन,
संतुलित करे मन और मस्तिष्क,
डॉक्टर की बचा लो पूरी किस्त।
मिर्च मसाले और खटाई,
चख सकेंगे मनपसंद मिठाई,
स्वाद लेंगे इनका रोज,
यदि करेंगे नियमित योग।
नई तकनीक के जमाने में,
मोबाइल, लैपटॉप आए हर हाथों में,
बढ़ने लगे क्रोध, चिंता और अवसाद,
ये हैं डिजिटल वर्ल्ड के प्रसाद।
ईश्वर ने एक नई राह दिखाई
बिन पैसे के मिल रही दवाई,
दिनचर्या में योग अपनाएँ,
योग का परचम हम फहराएँ।
स्वस्थ जीवन का शुभ संयोग बनेगा,
निश्चल प्रकृति का सहयोग मिलेगा,
जीवन में पंच तत्व समाहित होंगे,
गर योग करेंगे, स्वस्थ रहेंगे।
रचयिता
भारती मांगलिक,
सहायक अध्यापक,
कम्पोजिट विद्यालय औरंगाबाद,
विकास खण्ड-लखावटी,
जनपद-बुलंदशहर।
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