पवन दिवस
तर्ज-ए मालिक तेरे बंदे हम
ऐ इंसान करो तुम शर्म, ऐसे हों हमारे करम।
पेड़ों को लगाएँ, ऑक्सीजन को बढ़ाएँ।
ताकि साँसें बढ़ें, स्वस्थ रहें हरदम।
ऐ इंसान करो तुम शर्म, ऐसे हों हमारे करम।
पेड़ों को लगाएँ, ऑक्सीजन को बढ़ाएँ।
ताकि साँसें बढ़ें, स्वस्थ रहें हरदम।
ये चिमनियों का धुआँ, घना छा रहा।
सबकी साँसों में, भरा जा रहा।
हो रहा बेखबर, कुछ न आता नजर।
अपनी साँसों को, घटाता जा रहा।
है तेरी ऑक्सीजन में जो दम, वह जहर को कर दे खत्म।
पेड़ों को लगाएँ, ऑक्सीजन को बढ़ाएँ
ताकि साँसें बढ़ें, स्वस्थ रहें हरदम।
ऐ इंसान.......
बड़ा लाचार है, ये आदमी।
कर दी उसने, पेड़ों की कमी।
मकानों को बनाया, बगीचों को मिटाया।
हवा कैसे बनेगी, सब की जीवनी।
जब किया तूने ऐसे कर्म, अब तू ही झेलेगा ये गम।
पेड़ों को लगाएँ, ऑक्सीजन को बढ़ाएँ,
ताकि साँसें बढ़ें, स्वस्थ रहें हरदम।
ऐ इंसान,......
जब महामारियों का,
होगा सामना।
तब पेड़ ही, हमें तुम बचाना।
हम पेड़ों को लगाएँ, पवन दिवस मनाएँ।
नहीं आएगी, लालच की भावना।
चल पड़ी, अब ऑक्सीजन की पवन।
और मिटे, साँसों की घुटन।
पेड़ों को लगाएँ, ऑक्सीजन को बढ़ाएँ।
ताकि साँसें बढ़े, स्वस्थ रहें हरदम।
ऐ इंसान......
रचयिता
साधना,
प्रधानाध्यापक
कंपोजिट स्कूल ढोढ़ियाही,
विकास खण्ड-तेलियानी,
जनपद-फतेहपुर।
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