पिता दिवस
मैं तुम्हारा पिता हूँ!
तुमको वक्त नहीं दे पाता हूँ,
चार पैसे कमाने में लगा रहता हूँ।
क्या किया है तुमने यही सुनता रहता हूँ।।
मैं तुम्हारा पिता हूँ!
नीम के पेड़ सा कड़वा-कड़वा लगता हूँ।
पर छाया तुम्हारे ऊपर रखता हूँ,
बेटियों को परियाँ तो बेटों को सूरज कहता हूँ।।
मैं तुम्हारा पिता हूँ!
कम ही तुम्हें मैं समझ आता हूँ।
तुम्हारी उँगली पकड़ चलना सिखाता हूँ,
दुनिया से जाते वक्त तुझमें अपना नाम अमर कर जाता हूँ।।
रचयिता
शालिनी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय बनी,
विकास खण्ड-अलीगंज,
जनपद-एटा।
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