वायु अपरदन

 वायु अपरदन की आकृति 


मरुस्थल क्षेत्र में जब चलती तेज हवाएँ,

बड़े-बड़े पत्थर शिला देखो कटते जाएँ।

छत्रक शिला आकार है इसका छाता,

दोनों तरफ के भाग कटे भू स्तम्भ बन जाता।


कई भू स्तम्भ मिल जाते जब,

यारडंग हैं इसे कहते।।

याद करने की ट्रिक है,

मित्र देखो साथ में रहते।।


यारडंग पर जब हवा का अपघर्षण होता।

इंसेलबर्ग बन जाता, पत्थर है ये छोटा।।

चारो ओर से हवाएँ इनका भी करें अपरदन,

कहलाता है डाईकाँटर खड़े हो जाते हैं हम।।



वायु के निक्षेपण से बनी आकृति


बालू जब एक शिला के,

किनारे पर इकट्ठा हो जाता है।

बालू के ऐसे कण का ढेर,

बरखान कहलाता है।।


बरखान का हिस्सा, जब होता है ज्यादा।

बालू का स्तूप, इसे हमने है जाना।।

इस स्तूप के जब छोटे-छोटे, कण देखो फैल जाते।

मैदान की तरह बन जाता, लोयस ये कहलाते।।


मरुस्थल के बीच जब पहाड़ों के मध्य पानी,

बालसन झील कहते हैं हम सबकी जुबानी।

बालसन झील सूखकर,

प्लेया है देखो बनाती।। 


रचयिता
सुधांशु श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मणिपुर,
विकास खण्ड-ऐरायां, 
जनपद-फ़तेहपुर।

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