कबीर दास प्राकट्य दिवस
संत काव्य धारा के कवि कबीर दास महान,
महान व्यक्तित्व थे विलक्षण क्षमता से अनजान।
विधवा से था जन्म पालन जुलाहे ने किया था,
लोक लाज के भय से माँ ने इनका त्याग किया था।
रामानंद गुरु थे उनके सूफी धर्म ने प्रभाव डाला,
निर्गुण निराकार ईश्वर में आस्था को था तौला।
अवतारवाद बहुदेववाद मूर्ति- पूजा का खंडन किया,
हिंदू धर्म में व्याप्त जाति- पाति का विरोध किया।
बाह्य आडंबर का विरोध दिखावे से था परहेज,
तिलक लगाना, टोपी पहनना, दाढ़ी रखने से था गुरेज।
समाज सुधार, गुरु की महिमा का वर्णन काव्य में उनके,
ईश्वर से बढ़कर गुरु का स्थान था रचना में उनके।
आत्मारूपी प्रेमिका परमात्मारूपी प्रिय के विरह में व्याकुल,
रहस्यवाद, अद्वैतवाद के दर्शन आत्मा मिलन को आकुल।
सधुक्कड़ी भाषा के जनक, वाणी के थे वे डिक्टेटर,
जनभाषा के पक्षधर, उत्कृष्ट कला पक्ष करें उजागर।
मीठी वाणी बोलिए मन का आपा खोए,
संतकबीरनगर के मगहर में चिर निद्रा में सोए।
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