विश्व बाल श्रम निषेध दिवस
नन्हीं कली को खिलने से पहले ही मरोड़ दिया,
स्वार्थ की खातिर बच्चों का जीवन क्रम ही मोड़ दिया,
नादान नहीं जो बच्चों की पीड़ा को ना समझ पाए,
कुछ असमर्थता बताकर कर्तव्य से मुख मोड़ जाएँ।
पुस्तक पेन की बजाय हाथों में खुरपी कुदाल पकड़ाते हैं,
जिम्मेदार हम स्वयं हैं इल्जाम दूसरों पर क्यों लगाते हैं।
बालश्रम करके बच्चा मानसिक अस्वस्थ हुआ,
देश के भविष्य का सपना फिर चकनाचूर हुआ।
12 जून को विश्व भर में यह दिवस हम मनाते हैं,
यथार्थ ना सोच कर बस औपचारिकता निभाते हैं।
अनुच्छेद 23, 24 शोषण, अन्याय के विरुद्ध बताता है,
अफसोस हमारा ध्यान भटकता ही रह जाता है।
भारत में 1986 में बाल श्रम निषेध अधिनियम हुआ पारित,
खतरनाक उद्योगों में बच्चों की निषिद्ध मानी गई नियुक्ति।
अनुच्छेद 23 बच्चों के रोजगार पर लगाए प्रतिबंध,
मासूम बच्चों से कार्य मानवाधिकार का उल्लंघन।
बाल श्रम की समस्या का समाधान करे इंतजार,
जिम्मेदारी हमारी उनको दिलाना उनका अधिकार।
राष्ट्रीय बाल श्रम नीति 1987 में बनाई गई,
लेकिन इसकी महत्ता आज तक समझ न आई।
सोचती हूँ कुछ और, कलम भी कुछ कहना चाहे,
बच्चों की पीड़ा से मन है द्रवित ही होता जाए।
केवल कलम की शक्ति ही काम ना कर पाएगी,
एकजुट सहभागिता सही दिशा में मार्गदर्शन कराएगी।
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