चिड़िया

जामुन का पेड़ है मेरे घर, 

पक्षियों का बसेरा उस पर।। 

खगों का प्रात: चहचहाहट सुनकर,

मन सुख पाता है  प्रतिपल


कलरव से गुंजित हर प्रहर

कोयल, काग, तोता, तीतर

खगकुल की बैठक उस पर

जैसे चर्चा करनी होगी मुद्दों पर।


संध्याकाल कोयल का सुर मधुर,

मीठी तान सुनाती छुप छुप कर

सुंदरता को लगती है जैसे नजर,

खोजते रहते जन उसे इधर-उधर।


बिखराते है चीजें इधर-उधर,

नहीं गुस्सा आता मुझे इन पर।

इनके भोलेपन का  ही है असर,

खगकुल भाता मुझे अति मधुर।


रचयिता   

श्रीमती आभा उनियाल,

सहायक अध्यापक,

राजकीय प्राथमिक विद्यालय- गोठ,

विकास खण्ड- जौनपुर,

जनपद-टिहरी गढ़वाल,

उत्तराखण्ड।



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