मेरे आदर्श, मेरे पापा
आकर्षक व्यक्तित्व, ऊँचे आदर्श,
और गुणों की खान,
ऐसे जीवन बिताये,
मेरे पापा महान।
चलती फिरती पाठशाला वो,
कांधों की हैं दुशाला वो,
जीवन पथ के मार्गदर्शक वो,
हैं मेरे प्रथम शिक्षक और रक्षक वो।
मधुर थी उनकी मृदु वाणी,
सरस्वती के थे वो पुजारी,
पथ से गर विचलित हूँ,
तो सँभालती है, शिक्षा उनकी न्यारी,
हम फूल थे उनकी बगिया के,
वो थे आदर्श हम सबके।
स्वतंत्रता को ध्येय बनाया,
कर दी थी उस पर जवानी वारी,
कंचन सी देह उनकी,
देश सेवा में तपी थी हर बारी।
ये देश और हम संतानें उनकी
रहेंगी सदा ही आभारी।
देह त्यागा जब आप महानतम ने,
तब थी मुख पर आभा आपके न्यारी,
आज भी जब याद आते हैं वो,
मन हो उठता भारी,
लेकिन संयम और कर्तव्यपथ को
अग्रसरित रखती है शिक्षा उनकी सारी।
करती नमन मैं तुमको सदैव,
हूँ आज भी छोटी बेटी आपकी प्यारी
मेरी जीवन बगिया में महकती है,
पापा, ढेरों याद दें आपकी।
रचयिता
गायत्री पांडे,
सहायक अध्यापक,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय संजयनगर 1,
विकास खण्ड-रुद्रपुर,
जनपद-उधम सिंह नगर,
उत्तराखण्ड।
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां मैंम👌👌👌👌👍
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