अहा पिकनिक
नदी किनारे सुन्दर उपवन,
है महक रहा रंगीन फूलों से।
सर-सर ठंडी बहती है पवन
सब वृक्ष सज रहे हैं झूलों से।
टीचर दीदीजी ने फरमाया है,
कल वहाँ पिकनिक जाना है।
सुंदर, स्वच्छ वस्त्र पहनकर,
खाना-पानी लेकर आना है।
माँ -बाबा और दीदी के संग,
जब मैं पिकनिक पर जाता हूँ।
भैया के संग मिलकर अक्सर,
गगन में ऊँची पतंग उड़ाता हूँ।
पर कल की है बात निराली,
संग में होंगे कक्षा के साथी।
पिकनिक पर मौज मनायेंगे,
मिलकर गीत खुशी के गायेंगे।
छुपन छुपाई, छुक छुक गाड़ी,
कोई अगाड़ी, कोई पिछाड़ी।
लटक टहनियों से पेड़ों की,
गिर मत जाना कोई अनाड़ी।
हरी - हरी घास में सैर करेंगे,
ऊँचे-ऊँचे पेड़ों पर झूले झूलेंगे।
नाचेंगे व अन्त्याक्षरी खेलेंगे,
कैरम पर भी हाथ आजमायेंगे।
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माँ से बनवाकर मीठे पकवान,
हम सभी लायेंगे अपने साथ।
मिल बाँटकर हम सब खायेंगे,
खूब मजे से ले - लेकर स्वाद।
पर बात हमारी एक ये मानो,
नहीं करो कुछ भी नुकसान|
फूल डाल पर खिले ही अच्छे,
सदा रहे इस बात का ध्यान।
स्वच्छ रहे नदिया का पानी,
कभी न करना कोई नादानी|
नित कूड़ा कूड़ेदान में डालो,
भारत अपना स्वच्छ बनालो।
पिकनिक पर भी हमें जाना है,
पर्यावरण भी स्वच्छ बनाना है।।
रचयिता
नीलम कौर,
सहायक अध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय शाहबाजपुर,
विकास खण्ड-सिकन्दराबाद,
जनपद-बुलंदशहर।
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