कबीर दास
ज्येष्ठ मास में दिवस पूर्णिमा,
कबीरदास जी जन्म लिए।
मिल कमल पुष्प में लहरताल में,
नीरू नीमा को धन्य किए।।
मीठी वाणी करे शीतल मन,
कह समाज संस्कारित करें।
राम सच्चिदानंद हमारे कह,
निर्गुण काव्य के स्तंभ बने।।
विरोध किया कुरीतियों का,
सामाजिक बहिष्कार सहा।
बिल्कुल ना घबराया कबीरा,
इरादों में अडिग रहा।।
मिले झाँकी हर भाषा की,
कबीर की रचनाओं में।
कहलाई सधुक्कड़ी खिचड़ी,
महारथी खड़ी बोली हरयाणवी में।।
शिक्षित नहीं कबीरा अपने,
पर ज्ञान बड़ा अलंकृत।
बोल-बोल कर शिष्यों से,
लिखवाया अद्भुत ग्रंथ बीजक।।
साखी, सबद और रमैनी,
बीजक के थे भाग।
विरासत को रहे सहेजे,
शिष्य भागो और धर्मदास।।
रामानंद के शिष्य बने,
वाणी के थे डिटेक्टर।
राम नाम गुरु मंत्र मिला,
चिरनिद्रा का स्थान था मगहर।।
रचयिता
ज्योति विश्वकर्मा,
सहायक अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,
विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,
जनपद-बाँदा।
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