क्यों

तर्ज-बाबुल की दुआएँ


क्यों मुझको अकेला छोड़ गए,

क्यों मुझसे नाता तोड़ गए।

मेरे साजन प्रियवर मेरे,

क्यों मुझसे ऐसे रुठ गए,


जब से छूटा है साथ तेरा,

सुख चैन ना मैंने पाया है।

तेरे जाने से मेरे बालम,

दुनिया ने रंग दिखाया है।


मेरे जीवनसाथी बतलाओ,

क्यों मुझसे इतना दूर गए।

क्यों मुझको.......


मेरे हाथ की चूड़ी टूट गई,

माथे की बिंदिया छूट गई।

सिंदूर माँग का छूट गया,

होठों की लाली छूट गई।

मेरे हमदम मेरे प्रियतम,

तेरे जाने से हम भी टूट गए।

क्यों मुझको.........


मेरे मात पिता भी गैर हुए,

ससुराल भी अब अपनाए ना।

तुझ बिन अब मेरे बालम,

मुझको कोई बहलाए ना।

मेरे प्रियवर, मनमीत मेरे,

तेरे बिन इतने क्यों जुल्म हुए?

क्यों मुझको........


समझ बेचारा मुझको अब,

कई घात लगाए बैठे हैं।

मेरे कोमल तन मन पर,

कई नजर गड़ाए बैठे हैं।

मेरे साथी ओ मेरे रक्षक,

आ जाओ बनकर ढाल मेरे।

क्यों मुझको.........


होना विधवा अभिशाप है क्यों?

जीना इतना दुश्वार है क्यों?

विधवा की गलती इसमें क्या?

जीवन काटे वो रो रो क्यों?

ए दुनिया वालों सुन लो जरा,

हम पर ना अत्याचार करो।

क्यों मुझको........


रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।

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