पिता एक उम्मीद

पिता दिवस एक रोज नहीं, 

हम हर रोज मनाते हैं|

उनकी कुर्बानियों को हम, 

कैसे भूल जाते हैं|

पिता बच्चों के दिलों में रहते हैं, 

बच्चे जो भी कहते हैं|

चाहे बजट भी न हो, 

 हर हाल में हाजिर करते हैं|

पिता का साया है तो, 

हर एक चीज ने लुभाया है|

और हर चीज में उसका, 

प्यार नजर आया है|

माँ की डाँट को पिता के, 

प्यार ने भुलाया हैं|

पिता की डाँट ने सच्ची राह, 

पर चलना सिखाया है|

बच्चों की जीत की खातिर, 

खुद हार जाता है|

समाज में कैसे जीना है, 

संस्कार के पाठ सिखाता है|

खुद अभाव में रहता है, 

लेकिन हमें पढ़ाता है|

पास होने की खुशी में जैसे, 

खुद ही पास हो जाता है|


रचयिता

रीता गुप्ता,

सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कलेक्टर पुरवा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।



Comments

Total Pageviews