कब रुकती है धारा

चलते-चलते जब थक जाते,
जीवन का श्रम हरती धारा।

तुमको तो आगे बढ़ना है,
मानो हमसे कहती धारा।

चलना ही जिंदगी सदा है,
कब मारग में रुकती धारा।

जीवन तो संघर्ष पूर्ण है,
फिर भी कभी न रुकती धारा।

क्रियाशील रहकर ही जीवन में,
इस उपवन को महकाओगे।

विघ्नों को सहकर ही तुम,
जग में मान बढ़ाओगे।

रचयिता
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
जनपद-कासगंज।

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