बालमन

सुनहरा पल, अनमोल बचपन,
उमंग भरा, चंचल बालमन।।

यादों के खजाने को,
जब    खंगाला   मैंने
पाया   स्वर्णिम  पल,
तरंग  भरी  हलचल।

चाहत यही वापस मिल
जाए वो पुरातन क्षण,
जब ना थी कोई उलझन
और ना ही कोई शिकन।

वर्तमान भरा लिए ढेरों मुस्कान
वो तोतली वाणी का कलरव,
क्रमागत भरा मासूम बचपन
प्यारे बच्चे ज़िद भरा सच्चा मन।

बालमन की छोटी आशाएँ
बड़े सपनों भरी उम्मीदें
कुछ अधूरी कुछ पूरी इच्छाएँ,
ज़िंदादिल हैं इनकी अभिलाषाएँ।

मैं और ये  चंचल बचपन,
उमंग भरा मासूम बालमन।
   
रचयिता
प्रियंशा मौर्य,
सहायक अध्यापक,
कम्पोजिट उच्च प्राथमिक विद्यालय चिलार,
विकास क्षेत्र-देवकली,
जनपद-गाजीपुर।

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