अनुभूति के दोहे
सरस भाव अन्तर रमे,
सृजन सुखद अभिराम।
कवि का सुन्दर भाव हो,
निष्पक्ष और निष्काम।।
निज अनुभव से लिखत,
कल्पित शबद सुजान।
जन मन ज्योतित करत,
कविता दीप समान।।
भावों के रस छंद हों,
प्रेरक मधुमय बोल।
हे कवि! तुम ऐसा लिखो,
रचना हो अनमोल।।
अहंकार तजि सरस बनि,
कीजै जग के काम।
करम योग साँचा यही,
हृदय विराजें राम।।
ललित वचन रसना मधुर,
हृदय नहीं दुरभाव।
धन्य सहज सदभाव है,
सतजन सरस सुभाव।।
सृजन सुखद अभिराम।
कवि का सुन्दर भाव हो,
निष्पक्ष और निष्काम।।
निज अनुभव से लिखत,
कल्पित शबद सुजान।
जन मन ज्योतित करत,
कविता दीप समान।।
भावों के रस छंद हों,
प्रेरक मधुमय बोल।
हे कवि! तुम ऐसा लिखो,
रचना हो अनमोल।।
अहंकार तजि सरस बनि,
कीजै जग के काम।
करम योग साँचा यही,
हृदय विराजें राम।।
ललित वचन रसना मधुर,
हृदय नहीं दुरभाव।
धन्य सहज सदभाव है,
सतजन सरस सुभाव।।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
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