नवल प्रात
रजनी बीती उषा नवल है,
अन्तर शुचि रूप धवल है।
चेतन प्राण हर्ष मन छाया,
जीवन का नव राग सुनाया।
पूरब रवि की छिटकी लाली,
विकसित कलिका हर आली।
खगकुल कलरव करते उड़ते,
जागो-जागो सबसे यह कहते।
जागृत जीवन चल पथ अपने,
पाने जीवन के सुखमय सपने।
प्रात अंशु अब नवल-नवल है,
सुखद मनोरम भाव नवल है।
अन्तर शुचि रूप धवल है।
चेतन प्राण हर्ष मन छाया,
जीवन का नव राग सुनाया।
पूरब रवि की छिटकी लाली,
विकसित कलिका हर आली।
खगकुल कलरव करते उड़ते,
जागो-जागो सबसे यह कहते।
जागृत जीवन चल पथ अपने,
पाने जीवन के सुखमय सपने।
प्रात अंशु अब नवल-नवल है,
सुखद मनोरम भाव नवल है।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
Comments
Post a Comment