कैसे बने घर
हमारा परिवेश कक्षा 5 का पाठ्यक्रम कैसे बने घर काव्य रूप में
कहीं भी जाओगे भूल ना पाओगे,
जब भी आओगे घर को ही आओगे।
बोलो-बोलो मैं क्या कर नहीं पाता,
मेरे ही पास रहके तू दिन बिताता।
दिन में भी रहता है रात में भी रहता है,
फिर भी ये घर तुझसे कुछ ना कहता है।
घर के प्रकार
इसके कई रूप हैं और कई रंग,
एक दो और बहुमंजिल संग-संग।
जहाँ मौसम जैसा भी हो जाए,
लोग उसी तरह का घर बनाएँ।
बाँस का घर
आओं चलों बच्चों बाँस का घर बनाएँ,
बाँस का घर बने जहाँ ज्यादा बारिश आए।
दस बारह फ़ीट की ऊँचाई पर लगाये,
ताकि पानी पड़ने से बाँस सड़ न पाएँ।
फिर उसके नीचे हम लकड़ी लगाये,
इस तरह प्यारे बच्चों बाँस का घर बन जाए।
बर्फ के घर
चारों तरफ जहाँ बर्फ-बर्फ पाये जाएँ,
बर्फ की सिल्ली से हम घर बनाएँ।
अंदर से छूने में जो ठण्डी लागे,
पर बाहर से न बर्फ न आने दें।
ऐसे घर में हम आग जलाते,
ऐसे घर तो इग्लू कहलाते।
मिट्टी के घर
जहाँ कम बारिश हो, हो गर्मी भयंकर,
मिट्टी के घर में जीवन बितायें रहकर।
जिसकी दीवार मोटी गर्मी सोख जाते,
गर्मी से बचने के लिये मिट्टी का घर बनाते।
लकड़ी के घर
लकड़ी की नाव की तरह तैर जाए,
यही मेरे प्यारे बच्चों हाऊसबोट कहलाये।
पानी में जो घर तैरता ही चला जाए,
यही मेरे प्यारे बच्चों तैरता घर कहलाए।
चीन में बहुत लोग नाव पर घर बनाते,
नाव पर ही खेती करते वही खाना खाते।
उसी में सब्जी और पशुपालन करते,
ऐसे ही घरों को सामपान कहते।
पर्वतों पर घर
कुछ घर ऐसे है जो पर्वतों पर बनते,
पत्थरों को काट-काट कर ऊपर रखते।
पत्थरों के ऊपर मिट्टी चूने की पुताई,
और छत बनती नही सपाट भाई।
ढलाव वाले छत उनके बन जाते,
जो भी पानी गिरे वो भी ना टिक पाते।
बेघरों के घर
कुछ ऐसे लोग हैं जिनके न हों घर,
टेंट का घर लगाए वो हैं बेघर।
जो लोग टेंट का घर हैं बनाते,
वही मेरे प्यारे बच्चों घुमन्तु कहलाते।
कुछ भी हो कैसा भी हो है घर अपना,
अच्छा घर बन जाए सबका है सपना।
कहीं भी जाकर हम वापस आते,
घर में ही अपने सुकून हैं पाते।
रचयिता
दीपक कुमार यादव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मासाडीह,
विकास खण्ड-महसी,
जनपद-बहराइच।
मोबाइल 9956521700
कहीं भी जाओगे भूल ना पाओगे,
जब भी आओगे घर को ही आओगे।
बोलो-बोलो मैं क्या कर नहीं पाता,
मेरे ही पास रहके तू दिन बिताता।
दिन में भी रहता है रात में भी रहता है,
फिर भी ये घर तुझसे कुछ ना कहता है।
घर के प्रकार
इसके कई रूप हैं और कई रंग,
एक दो और बहुमंजिल संग-संग।
जहाँ मौसम जैसा भी हो जाए,
लोग उसी तरह का घर बनाएँ।
बाँस का घर
आओं चलों बच्चों बाँस का घर बनाएँ,
बाँस का घर बने जहाँ ज्यादा बारिश आए।
दस बारह फ़ीट की ऊँचाई पर लगाये,
ताकि पानी पड़ने से बाँस सड़ न पाएँ।
फिर उसके नीचे हम लकड़ी लगाये,
इस तरह प्यारे बच्चों बाँस का घर बन जाए।
बर्फ के घर
चारों तरफ जहाँ बर्फ-बर्फ पाये जाएँ,
बर्फ की सिल्ली से हम घर बनाएँ।
अंदर से छूने में जो ठण्डी लागे,
पर बाहर से न बर्फ न आने दें।
ऐसे घर में हम आग जलाते,
ऐसे घर तो इग्लू कहलाते।
मिट्टी के घर
जहाँ कम बारिश हो, हो गर्मी भयंकर,
मिट्टी के घर में जीवन बितायें रहकर।
जिसकी दीवार मोटी गर्मी सोख जाते,
गर्मी से बचने के लिये मिट्टी का घर बनाते।
लकड़ी के घर
लकड़ी की नाव की तरह तैर जाए,
यही मेरे प्यारे बच्चों हाऊसबोट कहलाये।
पानी में जो घर तैरता ही चला जाए,
यही मेरे प्यारे बच्चों तैरता घर कहलाए।
चीन में बहुत लोग नाव पर घर बनाते,
नाव पर ही खेती करते वही खाना खाते।
उसी में सब्जी और पशुपालन करते,
ऐसे ही घरों को सामपान कहते।
पर्वतों पर घर
कुछ घर ऐसे है जो पर्वतों पर बनते,
पत्थरों को काट-काट कर ऊपर रखते।
पत्थरों के ऊपर मिट्टी चूने की पुताई,
और छत बनती नही सपाट भाई।
ढलाव वाले छत उनके बन जाते,
जो भी पानी गिरे वो भी ना टिक पाते।
बेघरों के घर
कुछ ऐसे लोग हैं जिनके न हों घर,
टेंट का घर लगाए वो हैं बेघर।
जो लोग टेंट का घर हैं बनाते,
वही मेरे प्यारे बच्चों घुमन्तु कहलाते।
कुछ भी हो कैसा भी हो है घर अपना,
अच्छा घर बन जाए सबका है सपना।
कहीं भी जाकर हम वापस आते,
घर में ही अपने सुकून हैं पाते।
रचयिता
दीपक कुमार यादव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मासाडीह,
विकास खण्ड-महसी,
जनपद-बहराइच।
मोबाइल 9956521700
Comments
Post a Comment