बाल - दिवस
ये छोटे-छोटे बच्चे,
हैं मन के कितने सच्चे,
हँसते-खेलते, कूदते-फाँदते,
दिन बचपन के बड़े ही अच्छे।
अठखेलियाँ नित करते हैं,
उड़ानें बिन पथ भरते हैं,
छोड़ उलझनें, राह सुहानी,
स्वपनिल ताने-बाने बुनते हैं।
शैतानी दम भर करना चाहें,
स्कूल से हरपल बचना चाहें,
अबूझ प्रश्न कुछ आँखों में ले,
कलाम, इन्दिरा बनना चाहें।
ज्ञान नहीं है पढ़ने का,
ना ही भविष्य गढ़ने का,
इन्हें पहचान दिलानी है,
शिक्षक की गरिमा निभानी है।
रचयिता
राजीव कुमार गुर्जर,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय बहादुरपुर राजपूत,
विकास खण्ड-कुन्दरकी
जनपद-मुरादाबाद।
हैं मन के कितने सच्चे,
हँसते-खेलते, कूदते-फाँदते,
दिन बचपन के बड़े ही अच्छे।
अठखेलियाँ नित करते हैं,
उड़ानें बिन पथ भरते हैं,
छोड़ उलझनें, राह सुहानी,
स्वपनिल ताने-बाने बुनते हैं।
शैतानी दम भर करना चाहें,
स्कूल से हरपल बचना चाहें,
अबूझ प्रश्न कुछ आँखों में ले,
कलाम, इन्दिरा बनना चाहें।
ज्ञान नहीं है पढ़ने का,
ना ही भविष्य गढ़ने का,
इन्हें पहचान दिलानी है,
शिक्षक की गरिमा निभानी है।
रचयिता
राजीव कुमार गुर्जर,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय बहादुरपुर राजपूत,
विकास खण्ड-कुन्दरकी
जनपद-मुरादाबाद।
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