विद्यालय वो पावन जगह
जहाँ सुविचारों का होता हो नित सृजन।
जहाँ सुव्यवहारों का होता हो नित सृजन।
जहाँ सीखते हो सब भाषा प्रेम की
जहाँ मिलती हो सीख आशा स्नेह की।
जहाँ संगी साथी मिलजुल खेलें खेल
जहाँ हर झगड़े का अन्त हो अच्छा मेल।
जहाँ सीखें आपस मे हम सब भाईचारा
जहाँ कभी ना कोई तन मन से हारा।
जहाँ अक्षर-अक्षर बन जाते हैं ज्ञान
जहाँ बुद्धिमत्ता को मिलता सम्मान।
जहाँ नित-नित नये कलेवर हैं सजते
जहाँ नन्हें कदमो से कदम हैं मिलते।
जहाँ ममत्व की हरदम मिलती छाया
जहाँ से सबने जीवनपर्यन्त हो पाया।
जहाँ नित करते हम सब मन से योग
जहाँ योग से रखते हम शरीर निरोग।
जहाँ से जीवन को मिलती दिशाएँ
जहाँ सीखते नवीन पुरातन भाषाएँ।
जहाँ हर धर्म, जाति, सब मिलजुल रहते
उस जगह को पावन विद्यालय कहते।
रचयिता
प्रेमलता सजवाण,
सहायक अध्यापक,
रा.पू.मा.वि.झुटाया,
विकास खण्ड-कालसी,
जनपद-देहरादून,
उत्तराखण्ड।
जहाँ सुव्यवहारों का होता हो नित सृजन।
जहाँ सीखते हो सब भाषा प्रेम की
जहाँ मिलती हो सीख आशा स्नेह की।
जहाँ संगी साथी मिलजुल खेलें खेल
जहाँ हर झगड़े का अन्त हो अच्छा मेल।
जहाँ सीखें आपस मे हम सब भाईचारा
जहाँ कभी ना कोई तन मन से हारा।
जहाँ अक्षर-अक्षर बन जाते हैं ज्ञान
जहाँ बुद्धिमत्ता को मिलता सम्मान।
जहाँ नित-नित नये कलेवर हैं सजते
जहाँ नन्हें कदमो से कदम हैं मिलते।
जहाँ ममत्व की हरदम मिलती छाया
जहाँ से सबने जीवनपर्यन्त हो पाया।
जहाँ नित करते हम सब मन से योग
जहाँ योग से रखते हम शरीर निरोग।
जहाँ से जीवन को मिलती दिशाएँ
जहाँ सीखते नवीन पुरातन भाषाएँ।
जहाँ हर धर्म, जाति, सब मिलजुल रहते
उस जगह को पावन विद्यालय कहते।
रचयिता
प्रेमलता सजवाण,
सहायक अध्यापक,
रा.पू.मा.वि.झुटाया,
विकास खण्ड-कालसी,
जनपद-देहरादून,
उत्तराखण्ड।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
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