राही चल
राही चल रे चल,
जीत के पाने पल।
तेरा सुन्दर हो कल,
मंजिल तक चल।
राही चल रे चल।
तूने सपने सजाए हैं,
आँखों में समाए हैं।
भरने को रंग उनमें,
भर भावों का जल।
राही चल रे चल।
चित्र बनाए मन के,
बिम्ब सजाए उनके।
कर्मों की निष्ठा तेरी,
होने न पाए निबल।
राही चल रे चल।
जग को दिखाना है,
उसे सबको बताना है।
जीवन के उपवन में,
बरसा दे बूँदें शीतल।
राही चल रे चल।
जब कोई बाधा सी आए,
ऐ राही कभी न घबराए।
जाना है दूर अभी तो,
ये ध्यान रहे पल-पल।
राही चल रे चल।
जीत के पाने पल।
तेरा सुन्दर हो कल,
मंजिल तक चल।
राही चल रे चल।
तूने सपने सजाए हैं,
आँखों में समाए हैं।
भरने को रंग उनमें,
भर भावों का जल।
राही चल रे चल।
चित्र बनाए मन के,
बिम्ब सजाए उनके।
कर्मों की निष्ठा तेरी,
होने न पाए निबल।
राही चल रे चल।
जग को दिखाना है,
उसे सबको बताना है।
जीवन के उपवन में,
बरसा दे बूँदें शीतल।
राही चल रे चल।
जब कोई बाधा सी आए,
ऐ राही कभी न घबराए।
जाना है दूर अभी तो,
ये ध्यान रहे पल-पल।
राही चल रे चल।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
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