बचपन
जब भी अतीत के पन्नों को पलटा,
मेरा बचपन मुस्काया।
उसने दी मीठी आवाज,
जब खेलते थे दिन रात।
कभी खेलते आँख मिचौली,
कभी खो-खो कभी कबड्डी।
कभी रानी को घर लाने को,
कैरम में रम जाते थे।
कभी चोर सिपाही बन,
मन को बहलाते थे।
मम्मी-पापा के संग बैठ,
चंदा से बतियाते थे।
चंदा की चाँदनी में,
गिनती के अंक गाते थे।
उस छोटी सी उम्र में,
सपने बड़े देखते थे।
दुनियादारी से दूर रहकर,
बस खिलौनों पर मरते थे।
काश वो प्यारा बचपन फिर से आये,
जिसकी मीठी यादों से मन बार - बार
मुस्काये।।
आज इस भाग दौड़ की जिंदगी में
वो मासूम बचपन याद आया,
ऐसा लगा जैसे खुशियों ने
कोई प्यारा गीत गुनगुनाया।।
रचयिता
इन्दु पंवार,
प्रधानाध्यापक,
रा. प्राथमिक विद्यालय गिरगाँव,
जनपद-पौड़ी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।
मेरा बचपन मुस्काया।
उसने दी मीठी आवाज,
जब खेलते थे दिन रात।
कभी खेलते आँख मिचौली,
कभी खो-खो कभी कबड्डी।
कभी रानी को घर लाने को,
कैरम में रम जाते थे।
कभी चोर सिपाही बन,
मन को बहलाते थे।
मम्मी-पापा के संग बैठ,
चंदा से बतियाते थे।
चंदा की चाँदनी में,
गिनती के अंक गाते थे।
उस छोटी सी उम्र में,
सपने बड़े देखते थे।
दुनियादारी से दूर रहकर,
बस खिलौनों पर मरते थे।
काश वो प्यारा बचपन फिर से आये,
जिसकी मीठी यादों से मन बार - बार
मुस्काये।।
आज इस भाग दौड़ की जिंदगी में
वो मासूम बचपन याद आया,
ऐसा लगा जैसे खुशियों ने
कोई प्यारा गीत गुनगुनाया।।
रचयिता
इन्दु पंवार,
प्रधानाध्यापक,
रा. प्राथमिक विद्यालय गिरगाँव,
जनपद-पौड़ी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।
प्रशंशनीय
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