पूर्णिमा चन्द्र से खिला गगन

पूर्णिमा चन्द्र से खिला गगन,
हे गुरुनानक! तेरा वन्दन।

तुम तो तन-मन से भक्त रहे,
जन सेवा में अनुरक्त रहे।
तुम जिये सदा सार्थक जीवन,
हे गुरुनानक! तेरा वन्दन।

सौदा करके सच्चा-सच्चा,
अपनाया पथ सच्चा-सच्चा।
बच्चा-बच्चा कर रहा नमन,
हे गुरुनानक! तेरा वन्दन।

मन से, वाणी से एक रहे,
सब काम तुम्हारे नेक रहे।
थे व्यक्ति नहीं तुम आंदोलन,
हे गुरुनानक! तेरा वन्दन।

संदेश दिया मानवता का,
मानव मन की पावनता का।
तुमने दोहराये ईश भजन,
हे गुरुनानक! तेरा वन्दन।

तुम रहे तपस्या लीन सदा,
उन्नति विचार स्वाधीन सदा।
नैतिकता के सच्चे भूषण,
हे गुरुनानक! तेरा वन्दन।

हम चलें नीति पर नानक जी,
हम रहें प्रीति पर नानक जी।
मन में ऐसी कुछ भरो लगन,
हे गुरुनानक! तेरा वन्दन।

रचयिता
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
जनपद-कासगंज।

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