जो चाहगे, वह पाओगे
जो चाहोगे वह तुम पा जाओगे,
यदि मन का संकल्प जगाओगे।
तुम चिन्तन में भाव विशुद्ध भरो
निर्विकार चित की हर वृत्ति करो।
निर्मित करने शुभता नव विहान,
जागो बन सूरज सा दीप्तिमान।
यदि निज मन की शक्ति जगाओगे,
तुम दिव्य स्वयं बन दिखलाओगे।
संकल्पों में शक्ति बहुत ही होती है,
अन्तर में चेतनता भरती रहती है।
तुम निज में यदि निज को पाओगे,
जो चाहोगे वह तुम पा जाओगे।
यदि मन का संकल्प जगाओगे।
तुम चिन्तन में भाव विशुद्ध भरो
निर्विकार चित की हर वृत्ति करो।
निर्मित करने शुभता नव विहान,
जागो बन सूरज सा दीप्तिमान।
यदि निज मन की शक्ति जगाओगे,
तुम दिव्य स्वयं बन दिखलाओगे।
संकल्पों में शक्ति बहुत ही होती है,
अन्तर में चेतनता भरती रहती है।
तुम निज में यदि निज को पाओगे,
जो चाहोगे वह तुम पा जाओगे।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
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