गुरु का अमृत गान
धन, बल, साधन होते अनुपम
फिर भी भले बुरे का रखना ध्यान
गुरु जी का यही अमृत ज्ञान
विद्या, बुद्धि, सिद्धि, धन, बल से
करना केवल जनकल्याण
गुरु जी का यही अमृत गान
मन विचलित, मत करो त्राहिमाम
है पराजय तभी विजय गान
रात्रि पश्चात, आता दिनमान
उदासी का तम हर लेता,
प्रकृति में करता संधान
विद्या, बुद्धि, सिद्धि, धनबल से
करना केवल जनकल्याण
गुरु जी का यही अमृत गान
दोषों का गुरु करते खंडन,
गुण खानों का कर प्रकाशन,
शिष्यों के बनते अंतर प्राण
चिंता- ग्रहण की पीड़ा हर लेते,
प्रखरित करते किरण- मुस्कान
विद्या, बुद्धि, सिद्धि, धन,
बल से करना केवल जनकल्याण
गुरु जी का यही अमृत गान
जगत में ऊँचा उनका स्थान
रचयिता
रेनू अग्रवाल (ब्रज रेणु),
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय कुलेसरा,
विकास खण्ड-बिसरख,
जनपद-गौतमबुद्धनगर।
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