शिक्षक दिवस
तर्ज- न कजरे की धार....
कभी देते माँ का प्यार,
कभी करते पिता सा लाड़।
कभी मित्रों सी परवाह,
हाँ वो अपने गुरुजन हैं, वो अपने गुरुजन हैं।।
नादानी पर हर बार,
करते धीरज का वार।
वन्दन है बारम्बार,
हाँ वो अपने गुरुजन हैं, वो अपने गुरुजन हैं।।
हर जीवन चरित्र निभाएँ,
ईश्वर की राह दिखाएँ।
बालकरूपी फुलवारी के,
गुरुजन माली बन जाएँ।।
चरणों की धूलि चन्दन-२,
माथे लूँ मैं हर बार।।
नादानी पर हर बार,
करते धीरज का वार।
वन्दन है बारम्बार,
हाँ वो अपने गुरुजन हैं, वो अपने गुरुजन हैं।।
कौटिल्य, द्रोण, केशव तुम,
रण में जो गीता गाये।
विद्यारूपी धन देकर,
जीने की राह दिखाये।।
युग-युग से जिसकी महिमा-२,
गाता है ये संसार।।
कभी देते माँ का प्यार,
कभी करते पिता सा लाड़।
कभी मित्रों सी परवाह,
हाँ वो अपने गुरुजन हैं, वो अपने गुरुजन हैं।।
गुरुजनों का है आशीष मिला,
जो जली ज्ञान की ज्योति।
जीरो को अनन्तता देते,
क्षमता यह इनमें होती।।
अनुशासन जो सिखाएँ,
हर समर में वो करतार।।
नादानी पर हर बार,
करते धीरज का वार।
वन्दन है बारम्बार,
हाँ वो अपने गुरुजन हैं, वो अपने गुरुजन हैं।।
कभी देते माँ का प्यार,
कभी करते पिता सा लाड़।
कभी मित्रों सी परवाह,
हाँ वो अपने गुरुजन हैं, वो अपने गुरुजन हैं।।
रचयिता
ज्योति विश्वकर्मा,
सहायक अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,
विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,
जनपद-बाँदा।
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