'बेटी' जीवन की आशा
मन है ममता का, मीठी है भाषा,
गुलाब सी कोमल, बदन है तराशा,
माता-पिता के, जीवन की आशा,
द्विज घर का ध्यान, रखती है माँ सा।
सजावट जिससे, बनावट है जिससे,
चहकना, महकना, होता है जिससे,
दुःख में सदा, सबका ध्यान बँटाती,
किसी को कभी ना, करती निराशा,
द्विज घर का ध्यान, रखती है माँ सा।
त्योहार जिससे, संगीत है जिससे,
न्यारी-न्यारी सी, खुशियाँ हैं जिससे,
जिस घर मे आती, निज प्यार लुटाती,
छुई मुई है जैसे, कोई बतासा,
द्विज घर का ध्यान, रखती है माँ सा।
जब तक रहे जीवित, याद वो करती,
एक बुलावे पे, आ जाया करती,
समझदार बेटी, सबको समझाती,
वसुधैव कुटुम्बकम् की रखे पिपासा,
द्विज घर का ध्यान, रखती है माँ सा।
रचयिता
ऋषि दीक्षित,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय भटियार,
विकास क्षेत्र- निधौली कलाँ,
जनपद- एटा।
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