हम शिक्षक
प्रज्ञा के पावन प्रांगण में
बोए बीजों के सिक्तक हैं।
शारदे के सुरभित उपवन में
हम माली हैं हम शिक्षक हैं।
हिय में नित नूतन स्वप्न सजे
बगिया का मेरी हर फूल खिले
जिससे महके यह सृष्टि पटल
उन्नति के उन्नत शिखर चढ़े।
प्रशस्ति-पथ जो विकीर्ण हुए,
चुनते हैं हम उन काँटों को।
कच्ची मिट्टी से नित गढ़ते हैं
भूतल के सुंदरतम पात्रों को।
मेधा की जिसमें नाव चले
उस नदिया में हम नाविक हैं
शिक्षक हैं हम, हम शिक्षक हैं
है गर्व हमें यह, हम शिक्षक हैं।
रचयिता
डॉ0 ममता विमल अवस्थी,
एआरपी,
जनपद- गौतम बुद्ध नगर।
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