बेटी दिवस
कल था जिस तरह आज भी
उसकी आँखों में है पानी
दरिंदों को तो बस हर दिन
अपनी दरिंदगी है दोहरानी
हो निर्भया, प्रियंका या अंकिता
बीती क्या उन पर
सोचो जरा न मैंने जानी
और न तुमने जानी
चेहरे बदल रहे हैं हर रोज
यहाँ बस बेटियों के
नए नाम आ जाते हैं
पुराने बन जाते हैं कहानी
बस भूली हुई कहानी...
बस भूली हुई कहानी....
सिर्फ एक दिवस मनाकर
क्या हम फ़र्ज़ अदा कर पाएँगे
जब होगा कोई कुकृत्य
बस फिर से मोमबत्ती जलाएँगे
क्या यूँ ही हमेशा हम सब
बिटिया दिवस मनाएँगे
और देकर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि
अपना फ़र्ज़ निभाएँगे
रचयिता
पारुल चौधरी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय हरचंदपुर,
विकास क्षेत्र-खेकड़ा,
जनपद-बागपत।
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