शिक्षक दिवस

सिखा- पढ़ाकर जीवन को देता है आधार,

उसके गुणों का वर्णन कर पाना है दुश्वार।

विश्वास का शिष्यों में करता है वह संचार,

सच्चे हृदय से मानो उस गुरु का आभार।।


जीवन की चुनौती के लिए करता है तैयार,

शिष्यों को जिताने में कभी न माने हार।

उसका रहा है हम पर बड़ा ही उपकार,

गुरु की गुरु दक्षिणा रखना नहीं उधार।।


आदिकाल से दिया अपने शिष्यों को संस्कार,

उसके ज्ञान से हुआ सदा ही बेड़ा पार।

ज्ञान जो उसका पा लिया दूर हुआ अंधकार,

जीवन को आकार दिया बनकर उसने कुम्हार।।


कमियों पर उसने जब-जब किया प्रहार है,

समझो फिर प्रयास करना बारंबार है।

धरती पर ईश्वर का वह अवतार है,

उसके मार्गदर्शन से होता सदा सुधार है।


इतना देता है गुरु फिर क्यों उसका तिरस्कार है,

क्यों नहीं पाता वह कभी पुरस्कार है।

अपने शिष्य को जताता कभी मार, कभी प्यार है,

ऐसे महान गुरु की अवहेलना ना स्वीकार है।।


रचयिता

नम्रता श्रीवास्तव,

प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।


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