फागुन आया
सर्द रातें कुछ नर्म हुईं
हल्की सी गर्म हुईं
अलाव उठ गये
मन में उदमाद फूट पड़े
फागुन आया
रंगों की फुहार लिये
होली का त्यौहार लिये
मन में उल्लास लिये
जिस रंग की तमन्ना थी
वही महँगा था बाज़ार में
मुश्क़िल था खरीदना
दाम ऊँचे थे बहुत
गुंजाइश नहीं थी
मोल-भाव की
मिन्नतों से माँगा था 'गुलाल'
प्रेम और सौहार्द का
चढ़ाना चाहा था
गाढ़ा सा रंग
'ममता' भरे मन से
वेदना भरी मुस्कान पर
जो सिमट रही थी
हँसी की सलवटों में
खोज रही थी
अभावों में भावों को
मौन हुये अलगावों को
दिल से दिल के समभावों को
हर रंग दस्तक दे रहा था
कोई खुशी तो कोई
ग़म में डूब रहा था
कोई साँझ तो कोई भोर था
कोई श्याम तो कोई श्वेत था
सबका अपना महत्त्व था
सभी ने अपनी प्रीत निभायी
गंगा-जमनी तहज़ीब सिखायी
संस्कृति में ही रीत समायी!!
रचयिता
श्रीमती ममता जयंत,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय चौड़ा सहादतपुर,
विकास खण्ड-बिसरख,
जनपद-गौतमबुद्धनगर।
हल्की सी गर्म हुईं
अलाव उठ गये
मन में उदमाद फूट पड़े
फागुन आया
रंगों की फुहार लिये
होली का त्यौहार लिये
मन में उल्लास लिये
जिस रंग की तमन्ना थी
वही महँगा था बाज़ार में
मुश्क़िल था खरीदना
दाम ऊँचे थे बहुत
गुंजाइश नहीं थी
मोल-भाव की
मिन्नतों से माँगा था 'गुलाल'
प्रेम और सौहार्द का
चढ़ाना चाहा था
गाढ़ा सा रंग
'ममता' भरे मन से
वेदना भरी मुस्कान पर
जो सिमट रही थी
हँसी की सलवटों में
खोज रही थी
अभावों में भावों को
मौन हुये अलगावों को
दिल से दिल के समभावों को
हर रंग दस्तक दे रहा था
कोई खुशी तो कोई
ग़म में डूब रहा था
कोई साँझ तो कोई भोर था
कोई श्याम तो कोई श्वेत था
सबका अपना महत्त्व था
सभी ने अपनी प्रीत निभायी
गंगा-जमनी तहज़ीब सिखायी
संस्कृति में ही रीत समायी!!
रचयिता
श्रीमती ममता जयंत,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय चौड़ा सहादतपुर,
विकास खण्ड-बिसरख,
जनपद-गौतमबुद्धनगर।
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