उल्लास भरे यह होली
नव भाव भरे यह होली,
जनमन सब जोड़े होली।
एकात्म भाव को भर दे,
अब नूतन विचार भर दे।
अधरों पर मधुहास रहे,
नित जीवन मधुमास रहे।
हर विघ्न पंथ मिट जाए,
अभिनव प्रभात मुस्काए।
अब भावों की बने रंगोली,
अन्तर रंग सजाए होली।
नव भाव भरे यह होली।
समरसता का रंग बिखेरो,
फिर समता के चित्र उकेरो।
सदभाव मनों में भरकर,
एकात्म दृष्टि से लखकर।
हर मानव नित मुस्काए,
निज अभीष्ट वह पा जाए।
हो रीति प्रीति अलबेली,
अभिनव भावों की होली।
नव भाव भरे यह होली।
निज निज दायित्व निभाने,
वे लक्ष्य सुखद अब पाने।
सृजन सुखद नव मुस्काए।
सुखमय विहान दिखलाए,
दिव्य भाव भर जब जाए।
बनकर धारा नयी नवेली।
उल्लास भरे यह होली।
नव भाव भरे यह होली।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
जनमन सब जोड़े होली।
एकात्म भाव को भर दे,
अब नूतन विचार भर दे।
अधरों पर मधुहास रहे,
नित जीवन मधुमास रहे।
हर विघ्न पंथ मिट जाए,
अभिनव प्रभात मुस्काए।
अब भावों की बने रंगोली,
अन्तर रंग सजाए होली।
नव भाव भरे यह होली।
समरसता का रंग बिखेरो,
फिर समता के चित्र उकेरो।
सदभाव मनों में भरकर,
एकात्म दृष्टि से लखकर।
हर मानव नित मुस्काए,
निज अभीष्ट वह पा जाए।
हो रीति प्रीति अलबेली,
अभिनव भावों की होली।
नव भाव भरे यह होली।
निज निज दायित्व निभाने,
वे लक्ष्य सुखद अब पाने।
सृजन सुखद नव मुस्काए।
सुखमय विहान दिखलाए,
दिव्य भाव भर जब जाए।
बनकर धारा नयी नवेली।
उल्लास भरे यह होली।
नव भाव भरे यह होली।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
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