होली की फुहार
होली की फुहार
चुन्नू आओ! मुन्नू आओ!
आओ मिलकर धूम मचाओ।
रामू आओ! श्यामू आओ!
मोहन-मुरली तुम भी आ जाओ।।
अरे रमा! तुम क्यों चुप बैठीं।
रूठी हो तो मान भी जाओ।।
आओ-आओ सब धूम मचाओ।
रंगों भरी पिचकारी लाओ।
काले-नीले पीले चेहरे
कहीं रुपहले कहीं सुनहरे
उठो! अबीर भरो झोली में
सबके माथे तिलक लगाओ
फूलों जैसे सदा खिलो तुम
नाचो, गाओ गले मिलो तुम
मन की कालिख दूर भगाओ
खुशियाँ ही खुशियाँ बरसाओ
हुरियारों की टोली
हुरियारों की टोली आई अपनी बस्ती में।
रंग-बिरंगी होली आई अपनी बस्ती में।।
मुँह में लगा गुलाल सभी के कौन किसे पहचाने।
बिंदिया के संग रोली आई अपनी बस्ती में।।
कोई हर-हर बम-बम कहता कोई राधा कृष्णा।
हरी भाँग की गोली आई अपनी बस्ती में।।
सब कड़वाहट धो देना रंग के मौसम में।
मस्ती की हर बोली आई अपनी बस्ती में।।
जिसके संग हम नाचे-गाये खेले बचपन में।
आज वही हमजोली आई अपनी बस्ती में।।
चुन्नू आओ! मुन्नू आओ!
आओ मिलकर धूम मचाओ।
रामू आओ! श्यामू आओ!
मोहन-मुरली तुम भी आ जाओ।।
अरे रमा! तुम क्यों चुप बैठीं।
रूठी हो तो मान भी जाओ।।
आओ-आओ सब धूम मचाओ।
रंगों भरी पिचकारी लाओ।
काले-नीले पीले चेहरे
कहीं रुपहले कहीं सुनहरे
उठो! अबीर भरो झोली में
सबके माथे तिलक लगाओ
फूलों जैसे सदा खिलो तुम
नाचो, गाओ गले मिलो तुम
मन की कालिख दूर भगाओ
खुशियाँ ही खुशियाँ बरसाओ
हुरियारों की टोली
हुरियारों की टोली आई अपनी बस्ती में।
रंग-बिरंगी होली आई अपनी बस्ती में।।
मुँह में लगा गुलाल सभी के कौन किसे पहचाने।
बिंदिया के संग रोली आई अपनी बस्ती में।।
कोई हर-हर बम-बम कहता कोई राधा कृष्णा।
हरी भाँग की गोली आई अपनी बस्ती में।।
सब कड़वाहट धो देना रंग के मौसम में।
मस्ती की हर बोली आई अपनी बस्ती में।।
जिसके संग हम नाचे-गाये खेले बचपन में।
आज वही हमजोली आई अपनी बस्ती में।।
रचयिता
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
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