देते तुम्हें विदाई
रोते मन से रुँधे गले से, देते तुम्हें विदाई रे
विद्या विनम्रता की जननी कभी हृदय से भूल न जाना
पढ़कर लिखकर उन्नत बनकर सच्चाई को अपनाना
इस जग में पूजी जाती है हर युग में सच्चाई रे
रोते मन से......
अब तो सत्र खत्म है बच्चों अपने घर जाना होगा
जो कुछ भी हमसे सीखा है जग में फैलाना होगा
सारे जग में लहको, महको बनकर के पुरवाई रे
रोते मन से.......
सदा चमकती रहे तुम्हारे जीवन में दीवाली
सदा बिखरती रहे तुम्हारे आँगन में हरियाली
खिलती है प्रातः जग में जैसे सूरज की अरुणाई रे
रोते मन से.......
सब प्रसन्न आनंदित हों इच्छा यही हमारी
जीवन का पथ आलोकित हो शुभ कामना हमारी
एक-दूसरे से बिछोह की दुखमय बेला आई रे
रोते मन से......
विद्या विनम्रता की जननी कभी हृदय से भूल न जाना
पढ़कर लिखकर उन्नत बनकर सच्चाई को अपनाना
इस जग में पूजी जाती है हर युग में सच्चाई रे
रोते मन से......
अब तो सत्र खत्म है बच्चों अपने घर जाना होगा
जो कुछ भी हमसे सीखा है जग में फैलाना होगा
सारे जग में लहको, महको बनकर के पुरवाई रे
रोते मन से.......
सदा चमकती रहे तुम्हारे जीवन में दीवाली
सदा बिखरती रहे तुम्हारे आँगन में हरियाली
खिलती है प्रातः जग में जैसे सूरज की अरुणाई रे
रोते मन से.......
सब प्रसन्न आनंदित हों इच्छा यही हमारी
जीवन का पथ आलोकित हो शुभ कामना हमारी
एक-दूसरे से बिछोह की दुखमय बेला आई रे
रोते मन से......
रचयिता
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
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