बोलती गुफा

सुन्दर वन के जंगल में, खूँखार शेर एक रहता था।
जंगल के सभी जीवों को, अनायास मारा करता था।।

उसकी दहाड़ सुनकर के, जानवर सब छिप जाते थे।
इसीलिए उसको कई दिन भूखा रहना पड़ता था।।

शेर सोचने लगा एक दिन, लगता है मर जाऊँगा।
अगर रोज मैं इसी तरह, खाना नहीं पाऊँगा।।

बहुत दूर जा करके देखा, एक गुफा उसे खुली मिली।
अन्दर जाकर के देखा, वहाँ कोई भी था ही नहीं।।

शेर सोचने लगा लगता है, शिकार भोजन पर है गया।
इसीलिए वह वहीं रूका, और इंतजार में बैठ गया।।

सोच रहा था शाम को, जब शिकार वापस आएगा।
वह उसे मारकर पेट भर, भोजन अपना खाएगा।।

शाम हुआ रात हो आई, चाँदनी आसमान में छायी।
रात बिताने प्यारी लोमड़ी, अपने गुफा में वापस आयी।।

लोमड़ी जैसे आगे बढी, पदचिह्नों को देख लिया।
अपनी सूझ से उसने, भावी संकट भाँप लिया।।

लोमड़ी बोली प्यारी गुफा, क्या नाराज हो तुम अभी।
क्या हो गया है तुमको, तुम क्यों नहीं हो बोल रही।।

लगता है कोई है अन्दर, डर से तुम काँप रहीं।
अगर न तुम बोली आज तो, मैं रहूँगी और कहीं।।

लोमड़ी की बातें सुनके, शेर असमंजस में पड़ गया।
इसीलिए आवाज बदलकर, झट गुफा से बोल गया।।

नहीं प्यारी लोमड़ी, मैं गहरी नींद में सोयी थी।
अन्दर आ जाओ निडर, यहाँ नहीं है कोई भी।।

लोमड़ी बोली गुफा नहीं तुम, मैं तुमको पहचान गयी।
हे मूर्ख तुम यहीं रहो, वह वहाँ से भाग गयी।।

रचयिता
मनोहर लाल गौतम,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कनिगवाॅ,
विकास खंड -बीसलपुर,
जनपद -पीलीभीत।

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