पापा मुझको चाहिए

किसी शहीद के बच्चे ने होली पर अपने पापा का किस प्रकार इंतज़ार किया होगा कुछ पंक्तियाँ सम्मान में समर्पित हैं 

घर के द्वार पर वो बैठा करता इन्तजार,
जल्दी से आयें पापा कर दूँ रंगों की बौछार,

ना ज़ाने कब से पापा घर अपने आये हैं,
टॉफी, चॉकलेट, मिठाई कुछ भी ना लाये हैं,

आज जो आयेंगे तो उनसे खूब लड़ूँगा,
बोलूँगा ना कोने में कहीं जाके छुपूँगा,

शिकायतें हैं सबकी मैंने लिख के रखी हैं,
पापा से जो है कहना सब सोच रखी है,

होली है फिर भी घर ये कितना सूना-सूना है,
रंग है ना रौनक बस रोना-रोना है,

मम्मी ने गुंजिया तक है ना इस बार बनायीं,
ना रंग ना गुलाल ना पिचकारी दिलायी,

सब हैं मुझसे कहते पापा अब ना आयेंगे,
देश पर हैं मर मिटे वो पूजे जायेंगे,

मैं बालमन क्या जानूँ क्या उनको चाहिए,
सँवारने बचपन मेरा मेरे पापा मुझको चाहिए।
सँवारने बचपन मेरा मेरे पापा मुझको चाहिए।।

रचयिता
राजीव कुमार गुर्जर,
प्रधानध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय बहादुरपुर राजपूत,
विकास खण्ड-कुन्दरकी
जनपद-मुरादाबाद।

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