जल ही अमृत

जल ही अमृत, जल ही अनवरत,
कितना निर्मल, कितना शीतल।
जिसके बिना न जी पायें पल-पल,
इसलिए करें चिंतन हर पल।

कैसे जल बचाएँ हम,
फालतू जल न बहाएँ हम।
हर बूँद-बूँद अनमोल है,
जिसका न कोई मोल है।

जितनी जरूरत उतना लें हम,
बाकी को सहेजें हम।
जल नहीं तो कल नहीं,
कल नहीं तो पीढ़ी नहीं।

भविष्य को सुधारना होगा,
बूँद-बूँद को बचाना होगा।
सबको मिलकर करना होगा,
एकता का दम दिखाना होगा।

संकट गहरा छाया है,
पानी का तल घट गया है।
पानी का स्तर बढ़ाना होगा,
वर्षा का भी पानी बचाना होगा।

नदी का पानी स्वच्छ करो,
पशुओं को नहलाना बन्द करो।
फैक्ट्रियों का भी बहिष्कार करें,
गर वो गंदे पानी का उपचार न करें।

तालाबों को सूखने से बचाना है,
जल-जीव को बचाना है।
हर गाँव की शान तालाब है,
सूख गया तो अभिशाप है।

घर-घर से बूँद-बूँद बचानी है,
जन जन जागरूकता फैलानी है।
अगली पीढ़ी के लिए भी बचाना,
अब नही बनेगा कोई बहाना।

नैतिक जिम्मेदारी अगर समझ गए,
बहते पानी को रोक गए।
वर्षा के पानी को बचाना सीख गए,
अन्य कामों में प्रयोग सीख गए।

हर समस्या दूर हो जाएगी,
जब गम्भीरता से समझ जाएँगे।
जल ही जीवन है जीवन ही जल है,
जल की बूँद-बूँद में जीवन की साँसें हैं।

रचयिता
रीना सैनी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय गिदहा,
विकास खण्ड-सदर,
जनपद -महाराजगंज।

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