बालमन के स्वप्न
क्या कहता है यह बाल मन?
क्षणभर रुको, देखो, सुनो, समझो,
पाओगे एक निराला संसार यहाँ,
उड़ता, दौड़ता, भागता बालमन है जहाँ।
इन अक्षरों से इन किताबों से दूर,
इन जोड़ इन घटानों से दूर,
इस बोझ भरी शिक्षा से दूर,
इन रटंत दीक्षा से दूर।।
यह बाल मन रहता है वहाँ,
जहाँ रंग-बिरंगी तितलियाँ हैं,
जहाँ कल-कल बहती नदियाँ हैं।
जहाँ हर बात पर कोई खेल है,
जहाँ परेशानियों का न कोई मेल है।
जहाँ खूब सारी कहानियाँ हैं,
जहाँ निश्छल प्यारी शैतानियाँ हैं।
जहाँ हर पल दौड़ना कूदना है,
जहाँ पग-पग नाचना झूमना है।
जहाँ व्यथित मन का कोई स्थान नहीं,
जहाँ सुख-दुख का कोई भान नहीं।
जहाँ डाँट मार ना सुहाती है,
जहांँ ममता रस बिखराती है।
कितना अद्भुत है! यह बालमन
कितना सचमुच है यह बालमन।
आओ सब मिल संकल्प दोहराएँ,
भय, क्रोध, झूठ, बुराइयों से बालमन बचाएँ।
मिलकर एक शुरुआत लाएँ,
बालमन के स्वप्न बाल जीवन तक ले जाएँ।
रचयिता
मुकुल कुमार गर्जोला,
प्रा0 वि0 काकड़ीघाट रामगढ़,
जिला-नैनीताल,
उत्तराखण्ड।
क्षणभर रुको, देखो, सुनो, समझो,
पाओगे एक निराला संसार यहाँ,
उड़ता, दौड़ता, भागता बालमन है जहाँ।
इन अक्षरों से इन किताबों से दूर,
इन जोड़ इन घटानों से दूर,
इस बोझ भरी शिक्षा से दूर,
इन रटंत दीक्षा से दूर।।
यह बाल मन रहता है वहाँ,
जहाँ रंग-बिरंगी तितलियाँ हैं,
जहाँ कल-कल बहती नदियाँ हैं।
जहाँ हर बात पर कोई खेल है,
जहाँ परेशानियों का न कोई मेल है।
जहाँ खूब सारी कहानियाँ हैं,
जहाँ निश्छल प्यारी शैतानियाँ हैं।
जहाँ हर पल दौड़ना कूदना है,
जहाँ पग-पग नाचना झूमना है।
जहाँ व्यथित मन का कोई स्थान नहीं,
जहाँ सुख-दुख का कोई भान नहीं।
जहाँ डाँट मार ना सुहाती है,
जहांँ ममता रस बिखराती है।
कितना अद्भुत है! यह बालमन
कितना सचमुच है यह बालमन।
आओ सब मिल संकल्प दोहराएँ,
भय, क्रोध, झूठ, बुराइयों से बालमन बचाएँ।
मिलकर एक शुरुआत लाएँ,
बालमन के स्वप्न बाल जीवन तक ले जाएँ।
रचयिता
मुकुल कुमार गर्जोला,
प्रा0 वि0 काकड़ीघाट रामगढ़,
जिला-नैनीताल,
उत्तराखण्ड।
Comments
Post a Comment