जल ही जीवन है

जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं।
दोहन होता रहा गर जल ऐसे ही,
सूख जाएगी वसुधा,
न रह जायेगा जीवन कहीं।।

     अंधा धुंध वृक्षों की गर होती रही ऐसे ही कटान,
      बूँद-बूँद जल के लिए
तरस जाएगा इंसान।।

आधुनिकता की अंधी दौड़ में,
जल, जमीन, जंगल का गर ऐसे ही होता रहा ह्रास।
अब इनके लिये ही होगा
तृतीय विश्व युद्ध,
कर लें सब विश्वास।।

सरकारें ही जल सम्वर्द्धन का करेंगी उपाय,
हम सब सिर्फ कोसते रहें,
दूर करनी होगी ये भ्रांति।

निंदा आलोचना छोड़कर,
जल संरक्षण और वृक्ष लगाने की
जन-जन में लानी होगी क्रांति।।

जल दोहन की समस्याओं को
आम जन में करना होगा उजागर।।

सर्वजन में इस मूलमंत्र का करना होगा प्रसार।
बूँद-बूँद से घड़ा भरता बूँद-बूँद से सागर।।

जल से ही नियंत्रण होता पृथ्वी का तापमान,
जीवित प्राणियों के लिए जल अमृत समान।

आवश्यक कार्यों में ही हो जल का उपयोग,
अधिकाधिक वृक्ष लगाकर बनाया जा सकता है देश महान।।

धरती को हर-भरा बनाने के लिये,
धरती पर जल संकट दूर करने का करे यह प्रण।
आओ सब मिल-जुलकर
गड्ढे तालाब कुएँ बनाकर
करें जल संरक्षण।।

रचयिता
रवीन्द्र नाथ यादव,
सहायक अध्यापक,  
प्राथमिक विद्यालय कोडार उर्फ़ बघोर नवीन,
विकास क्षेत्र-गोला,
जनपद-गोरखपुर।

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