स्वतंत्रता का मोल
शस्य श्यामल भारत की वसुधा
परतंत्र निराश लाचार अधीन
देकर अपनी अमर शहादत
देश को अपने कर गए स्वाधीन|
मोल कभी ना चुका सकेंगे
इतने अगनित प्राणों का
खुली हवा में स्वच्छंद हैं हम जो
परिणाम है कितने त्यागों का|
हँसते-हँसते प्राण न्योछावर
इतना भी आसान नहीं है
हो देश प्रेम का जज्बा मन में
सच्चा देश का भक्त वही है|
हमें मिली अनमोल आजादी
कितने ही संघर्षों से
प्रतिफल हमने दिया है कैसा
सोचो इतने वर्षों में|
भेदभाव तो मिटा ना पाए
जात पात को हटा ना पाए
मानव ही मानव का दुश्मन
गद्दारों को ढूँढ ना पाए|
भ्रष्टाचार के मकड़जाल ने
देश को चारों ओर है घेरा
लुटती है अबला की अस्मत
कहाँ है वो आजादी का सवेरा|
स्वतंत्र हुए उन गोरों से हम
मन की कालिख अभी वहीं है
अमर शहीदों ने सौंपी जो
क्या यही वह सच्ची आजादी है|
क्यों ना फिर से मनन करें हम
कैसे सफल हो अमर शहादत
देश प्रेम का भाव हो सबमें
सत्य, अहिंसा की हो इबादत|
अक्षुण्य रखें सम्मान देश का
स्वर्णिम युग फिर आएगा
सकल विश्व में पूर्ण शौर्य से
भारत का ध्वज लहराएगा|
उस दिन ही सच्चे अर्थों में
आजादी हमको हासिल होगी
भारत की भावी पीढ़ी फिर
जग में सबसे काबिल होगी|
जय हिंद जय भारत
रचयिता
भारती खत्री,
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय फतेहपुर मकरंदपुर,
विकास खण्ड-सिकंदराबाद,
जनपद-बुलंदशहर।
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