खुदीराम बोस
आओ बच्चों आज बताएँ,
खुदीराम बोस की कहानी।
फाँसी पर झूला था जो,
बाली उमर का वीर अभिमानी।।
धन्य-धन्य तुम खुदीराम,
बनकर भड़के थे शोला।
जंजीर गुलामी की देख ना पाया,
मन भारत माँ की जय बोला।।
मैं भी लड़ूँगा देश की खातिर,
प्रण मन में ले लिया।
उन्नीस बरस की युवा उम्र में,
जीवन का बलिदान दिया।।
किंग्सफोर्ड के वाहन पर,
हमला विस्फोटक से बोला।
युगान्तर के इस वीर ने,
दमखम से मोर्चा खोला।।
धन्य हुई माँ लक्ष्मी प्रिया,
वीर सपूत को जाई थी।
त्रैलोक्यनाथ पिता गर्वित,
आँखों में चमक सी आयी थी।।
मतवाले ने खूब सहा,
अंग्रेजों का अत्याचार।
11 अगस्त 1908 को,
पहन लिया फाँसी का हार।।
गीता को हाथों में लेकर,
चिरनिन्द्रा में सो गया था।
भारत माँ का एक लाल फिर,
आसमां में खो गया था।
बलिदान की 'ज्योति' जलाकर,
नव युग का आरम्भ किया।
लेकर जन्म हिन्दुस्तान में,
जन-जन को था धन्य किया।।
रचयिता
ज्योति विश्वकर्मा,
सहायक अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,
विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,
जनपद-बाँदा।
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